नवरात्र की षष्ठी पर मां भगवती के छठे स्वरूप माता कात्यायनी का हुआ विधिवत पूजन

मां दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है । कत नामक महर्षि के पुत्र ऋषि कात्य ने भगवती पराम्बा की उपासना कर उनसे घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने की प्रार्थना की थी। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली थी। इन्हीं कात्य गोत्र में विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। कुछ काल के बाद दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत बढ़ गया, तब भगवान् ब्रह्मा, विष्णु, महेश अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। 

इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिये ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा यमुना तट पर की थी। नवरात्र के छठे दिन मां भगवती के दर्शन पूजन का विधान है काशी में माता का मंदिर संकठा घाट पर आत्मविश्वेश्वर मंदिर परिसर में मौजूद है। जहां भोर से ही माता के दर्शन हेतु भक्ति पहुंचने लगे इस दौरान माता को गुड़हल की माला नारियल चुनरी फल फूल मिष्ठान इत्यादि अर्पित कर श्रद्धालुओं ने माता के अद्भुत स्वरूप का दर्शन पूजन किया। 

स्कंद पुराण में कहा गया है कि देवी के कात्यायनी रूप की उत्पत्ति परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से हुई थी और इन्होंने देवी पार्वती द्वारा दिए गए शेर पर विराजमान होकर महिषासुर का वध किया था। इनकी पूजा करने से भक्तों को आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि मां कात्यायनी विवाह में आने वाली बाधाओं को भी दूर करती हैं।

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