शारदीय नवरात्र का सातवां दिन मां कालरात्रि को समर्पित है. मां कालरात्रि को कई नामों से जाना जाता है महायोगीश्वरी, महायोगिनी और शुभंकरी भी मां के ही नाम हैं. भक्त मां कालरात्रि की आज के दिन विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. माना जाता है कि इस दिन तंत्र-मंत्र के साधक भी मां कालरात्रि की आराधना में लीन रहते हैं. अन्य दिनों की पूजा से हटकर भी मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. मां कालरात्रि की पूजा करने से मान्यतानुसार शनि ढैय्या का प्रभाव भी कम होता है मां के स्वरूप की बात करें तो मां का वर्ण अंधकार की भांति काला होता है. काले अथवा श्याम रंग की वजह मां का क्रोध था.
पौराणिक कथाओं के अनुसार असुरों के प्रकोप और हाहाकार से मां भयंकर रूप से क्रोधित हो गई थीं जिससे उनका रंग श्यामल हो गया. मां कालरात्रि चार भुजाओं वाली हैं और शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं.एक हाथ में मां शत्रुओं की गर्दन और दूसरे में तलवार पकड़कर युद्धस्थल पर निकलती हैं. मां की सवारी गर्दभ है। काशी में माँ कालरात्रि का मीरघाट के समीप कालिका गली में स्थित मां का मंदिर काफी प्रसिद्ध माना जाता है।
कहा जाता है माता के मंदिर मे जो भी भक्त शीष झुकाता है और उनसे जो भी कुछ मांगता है, मां उसे जरूर पूरा करती हैं। चार भुजाओं वाली माता का स्वरूप दिखने में जितना विकराल लगता है, असल में उतना है नहीं। माता काफी सौम्य स्वभाव की है और उनके दर्शन मात्र से ही सभी नकारात्मक शक्तियां दूर चली जाती है। नवरात्रि की सप्तमी तिथि पर मान्यता के अनुसार भक्तों ने माता के दरबार में पहुंचकर दर्शन पूजन किया और मन से सुख शांति की कामना की।