कार्तिक हरि प्रबोधिनी एकादशी का पर्व धूमधाम से मनाया गया मानता है कि भगवान विष्णु इस तिथि पर योग निद्रा से जागते हैं वही हरि प्रबोधिनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक तुलसी जी का पूजन अर्चन किया जाता है और इस दिन काशी में विभिन्न स्थानों पर तुलसी विवाह का भी आयोजन होता है इसी कड़ी में प्रबोधिनी एकादशी पर भोर से ही लोगों ने गंगा घाटों का रुख किया और गंगा में पूर्ण की डुबकी लगाई। गंगा स्नान के बाद दान पुण्य किया श्रद्धालुओं ने मान्यता के अनुसार गाने माता तुलसी का पौधा खरीद कर तुलसी विवाह किया और विधिवत पूजन अर्चन किया गया महिलाओं ने इस परंपरा का निर्वहन किया घाट के पुरोहित पंडित वासुदेव ने प्रबोधिनी एकादश तुलसी विवाह के महत्व के संदर्भ में जानकारी दी।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान श्रीहरि के जागने का पर्व देवोत्थानी एकादशी मनाया जाता है। इस तिथि को देवउठनी एकादशी और श्रीहरिप्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान चार महीने योगनिद्रा में चले जाते हैं। देवोत्थानी एकादशी पर उनके जागने के साथ विवाह समेत सभी मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। इसी दिन तुलसी-शालग्राम विवाह भी होता है।
इस दिन घरों में तुलसी की पूजा की जाती है। तुलसी के गमले को गेरू से रंग कर उस पर ईख यानी गन्ने से मंडप बनाया जाता है। पूजा के बाद गमले पर चुनरी ओढ़ाई जाती है और श्रृंगार सामग्री चढ़ाई जाती है। फिर शालीग्रामजी का सिंहासन लेकर तुलसी के चारों ओर सात बार परिक्रमा करवाई जाती है।