काशीपुराधिपति संग गौना कराकर विदा हुईं माता गौरा, विशेष साज-श्रृंगार के साथ निकली पालकी यात्रा की एक झलक पाने को आतुर दिखे भक्त

तीनों लोगों में न्यारी काशी अपनी अनूठी परंपराओं के लिए पूरे विश्व में विख्यात है।  यहां हर त्यौहार की अलग और अनूठी परंपराएं हैं। ऐसी मान्यता रही है कि महाशिवरात्रि पर जहां भगवान शंकर और माता गौरा का विवाह होता है तो वही रंग भरी एकादशी के दिन उत्सवी माहौल में माता गौरा का गौना होता है। 

काशी की यह सुप्रसिद्ध परंपरा है जो सैकड़ो वर्षों से निभाई जा रही है।  राजसी साज सज्जा के साथ बाबा श्री काशी विश्वनाथ और माता गौरा की रजत चल प्रतिमा की आकर्षक पालकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। 

इसे पूर्व रजत विग्रह की आरती पूजन के साथ ही भक्तों के दर्शन के लिए रखा जाता है। जहां भक्त पहुंचकर बाबा को अबीर गुलाल अर्पित करते हैं और यही से काशी में रंगों के त्योहार होली की शुरुआत हो जाती है। बता दें कि रंगभरी एकादशी पर माता गौरव और बाबा के श्रृंगार के लिए विशेष परिधान मांगे गए हैं बाबा विश्वनाथ के लिए अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकर पुरी ने कोलकाता से किरीट और काठियावाड़ी परिधान मंगाया है माता गौरा कांजीवरम साड़ी में विदा हुई।

बता दे की काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ मंगलवार को गाना बारात लेकर ससुराल पहुंच गए थे टेढ़ी नीम स्थित पूर्व महंत आवास गौरा सदनिका में बारात का विशेष रंग भरी ठंडाई से स्वागत हुआ।

वहीं बुधवार को रंग भरी एकादशी पर उत्सवी माहौल के बीच में अबीर गुलाल की फुहार के साथ बाबा और माता गौरा को सुसज्जित पालकी में विराजमान किया गया और यह पालकी यात्रा भक्तों के हुजूम के बीच निकली। सकरी गलियों में जमकर अबीर गुलाल उड़े और गुलाब की पंखुड़ियां की वर्षा हुई यही नहीं इस वर्ष काशी सहित मथुरा और अयोध्या से आये विशेष हर्बल गुलाल वर्षा की गई। हर हर महादेव के उद्घोष के बीच होलियाना मस्ती में भक्त झूमते दिखे। 

डमरू की ध्वनि और भक्तों के हर हर महादेव के गगन भेदी उद्घोष से पूरा वातावरण गूंजायमान रहा इस बेहद खास उत्सव को हर कोई अपने कमरे में कैद करते नजर आया। बता दे की परंपरा अनुसार रंग भरी एकादशी पर गौरा के गाने पर काशीवासी अबीर उड़ाते हैं साथ ही बाबा से अनुमति लेकर रंगोत्सव की शुरुआत करते हैं जो की बुढ़वा मंगल तक चलता है।


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