प्रभु जगन्नाथ हुए स्वस्थ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ डोली में सवार होकर भक्तों को दिया दर्शन, कल होंगे रथारुढ़

अस्सी क्षेत्र में स्थित भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा का भव्य मंदिर है। जहां से हर साल भगवान जगन्नाथ की डोली पालकी यात्रा निकाली जाती है। इसी क्रम में आज शनिवार को स्वस्थ होने के बाद भगवान जगन्नाथ भक्तों को दर्शन के लिए श्रीयंत्राकार रथ पर सवार होकर काशी की गलियों में बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ सैर को निकले। 

काशीराज परिवार के सदस्यों ने भगवान जगन्नाथ का रथ खींचकर यात्रा की शुरुआत करेंगे। छह जुलाई को भगवान जगन्नाथ काशी की गलियों में लोगों को दर्शन देने के लिए निकलें। वहीं सात जुलाई से तीन दिवसीय रथयात्रा मेला की भव्य शुरुआत आरती के साथ होगी। भगवान जगन्नाथ 7 जुलाई को भोर में रथ पर सवार होगे, घंटा घड़ियाल डमरू के धुन पर भब्य आरती की जाती है।

भगवान जगन्नाथ जी की भव्य शोभायात्रा निकालने के साथ ही हर हर महादेव, राधे कृष्णा, भगवान जगन्नाथ की जय, का जय घोष होता है। इस दौरान जैसे ही भगवान डोली पर सवार होते हैं डमरूदल, शंखनाद के गूंज से क्षेत्र गूंजाएमान हो जाता है। लोग डोली को कंधा देने के लिए लालायित दिखते हैं। लाखों की संख्या में लोग भगवान जगन्नाथ की डोली के साथ चलते हैं। रास्ते भर भगवान जगन्नाथ पर पुष्प वर्षा और अक्षत महिलाओं द्वारा छिड़का जाता है। जहां से भी भगवान जगन्नाथ की डोली निकलती है लोग अपने ही स्थान से खड़े होकर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को प्रणाम करते हैं। डोली यात्रा निकालने के साथ ही पूरी काशी भगवान जगन्नाथ की भक्ति में लीन दिखाई देती है।डोली यात्रा जैसे संकुल धारा पोखरा स्थित द्वारकाधीश मंदिर के पास पहुंचती है वैसे ही भगवान की डोली कुछ पल के लिए रुकती है।  लोगों में प्रसाद वितरण होता है उसके बाद डोली यात्रा आगे बढ़ जाती है।भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र का रथ शीशम की लकड़ी से श्रीयंत्र के आकार का बना हुआ होता है। रथ की चौड़ाई 21 फीट और ऊंचाई 18 फीट होती है। प्रथम तल पर चारों तरफ पहियों के ऊपर 14 खंभे और द्वितीय तल पर अष्टकोणीय गर्भगृह में छह खंभे लगे हैं। सामने लाल रंग के दो आधे खंभे हैं जो बाहर से तीन तरफ से आच्छादित हैं। रथ की छतरी अष्टकोणीय कमानीदार है। कुल मिलाकर रथ का स्वरूप काफी भव्य है। रथ के शिखर पर चांदी का ध्वज और चक्र लगाया जाता है। जब भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होते हैं तब चांदी के डंडे से चांदी का ध्वज लगाया जाता है। इसमें दोनों ओर हनुमान जी विराजमान रहते हैं। त्रिकोणीय ध्वज की ऊंचाई पांच फीट और लंबाई डंडे से नोक तक तीन फीट है। अष्टकोणीय गर्भगृह के मुख्य द्वार के ऊपर सामने रजत पत्र पर केंद्र में श्रीगणेश जी एंव ऋद्धि-सिद्धि विराजमना हैं। 1802 ईस्वी में निर्मित इस रथ में लोहे के 14 पहिए लगाए गए हैं। हर पहिए में 12 तीलियां हैं। आगे के दो पहियों के जरिये रथ को घुमाने के लिए स्टीयरिंग लगाई गई है। रथ के अग्रभाग के केंद्र में सारथी विराजमान होते हैं, जो कांस्य धातु के हैं। इस पर चांदी के पानी की पालीश है। रथ के आगे दो कांस्य के अश्व लगाए जाते हैं। इनके ऊपर चांदी के पानी की पालिश होती है।

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