अश्विन नाट्य महोत्सव में शास्त्रीय नाटक दूतवाक्यम का हुआ मंचन

आश्विन नाट्य महोत्सव की पांचवीं संध्या में शास्त्रीय नाटक 'दूतवाक्यम' का मंचन हुआ। संस्कृत के महाकवि भास की काव्यकृति पर आधारित इस नाटक में रामधारी सिंह 'दिनकर' के - खण्डकाव्य 'रश्मिरथी' के तीसरे अंक की पंक्तियों 'याचना नहीं अब रण होगा...' को शामिल किए जाने से नाटक की गंभीरता प्रभावित हुई।

मुरारीलाल मेहता प्रेक्षागृह में बुधवार को मेजबान संस्था श्रीनागरी नाटक मंडली के बैनर तले मंचित नाटक की धीमी गति, दुर्योधन के संवाद में 'मधुर विचार' जैसे प्रयोग पर भी दर्शक दीर्घा से उंगली उठती रही। कुछ रंगदर्शक तो कथानक से भी असहमत होते रहे। संवाद के रूप में पहला वाक्य सुनने के लिए दर्शकों को 17 मिनट तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। यही नहीं नाटक में जहां- तहां यवनिका का प्रयोग भी दर्शकों को असहज करने वाला रहा। यवनिका का प्रयोग प्रायः रानी, राजकुमारी अथवा किसी ऐसे दृश्य के दौरान करने का विधान है जिसके बारे में दर्शकों को बताना तो है लेकिन वह दृश्य दिखाना नहीं है। लेकिन दूतवाक्यम में दुर्योधन, गुरु द्रोण और भीष्म पितामह के आगमन के दौरान में यवनिका पर्दा) का प्रयोग किया गया।



श्रीकृष्ण के पांडवों का दूत बनकर कौरवों के राजमंडल की सभा में जाने पर केंद्रित नाटक का निर्देशन युवा रंगकर्मी उत्कर्ष सहस्रबुद्धे ने किया। नाटक में विकेश सेठ (दुर्योधन) का अभिनय प्रशंसनीय रहा।



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