बलिया नरहि थाना पुलिस को चकमा देकर अवैध वसुली करनेवाले दो आरोपितों ने अदालत में किया आत्म समर्पण

बलिया नरहि थाना के भरौली चेकपोस्ट पर ट्रकों से अवैध वसुली सहित अन्य मामलों में मुख्य आरोपी चन्दन यादव और प्रवीण कुमार राय ने पुलिस को चकमा देकर सोमवार को विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (प्रथम) अवधेश कुमार की अदालत में आत्म समर्पण कर दिया। अदालत ने दोनों आरोपियों को 14 दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया। 

दोनों आरोपी अपने अधिवक्ता मनीष राय व आदित्य राय के साथ कोर्ट पहुचें थे। अधिवक्ता मनीष राय द्वारा बताया गया कि दोनों आरोपीयों पर गैर जमानती वारंट व पुलिस प्रशासन द्वारा 5 हज़ार रूपये का इनाम घोषित था। साथ ही न्यायालय द्वारा कुर्की की कार्रवाई के लिए आदेश पहले से हुआ था।

जाने क्या था मामला

वाराणसी के एडीजी पीयूष मोर्डिया और आजमगढ़ के डीआईजी वैभव कृष्ण ने भरौली चेकपोस्ट पर भी दबिश डाली थी. इस रेड के परिणाम चौंकाने वाले तो हैं ही, पूरे पुलिस महकमे को शर्मिंदा भी करने वाले हैं. इस रेड में पता चला कि अकेले कोरंटाडीह चौकी पर तैनात पुलिस प्रतिदिन पांच लाख रुपये की वसूली करती है. इस चौकी के सामने से रोजाना करीब 1000 ट्रक गुजरते हैं और प्रत्येक ट्रक से 500 रुपये वसूला जाता है. इस वसूली को विधिवत डायरी में दर्ज किया जाता है और अगले दिन इस पूरे पांच लाख की रकम की बंदरबांट होती है.

दोनों पोस्ट पर होती है प्रति ट्रक 500 की वसूली

इसी डायरी में विवरण है कि इसमें से कितनी रकम कप्तान को, कितने एडिशनल और डिप्टी एसपी को तथा यहां तैनात सिपाहियों से लेकर इंस्पेक्टर तक को दी जाती है. ठीक यही स्थिति इसी थाना क्षेत्र के भरौली चेकपोस्ट पर भी बनती है और यहां से भी हर रात गुजरने वाले 1000 ट्रकों से पांच-पांच सौ रुपये की वसूली होती है. अब तक तो हमने वो कहानी बताई, जो शुक्रवार की शाम तक पुलिस अधिकारियों ने प्रेस कांफ्रेंस या अन्य माध्यमों से सार्वजनिक कर दी. अब वो कहानी बताएंगे, जो विवेचना के लिए पुलिस ने अपनी केस डायरी में दर्ज किया है.

दलालों ने पूछताछ में किए बड़े खुलासे

यह विवरण रेड के दौरान पकड़े गए पुलिस कर्मियों और उनके दलालों से पूछताछ के आधार पर तैयार किया गया है. पकड़े गए दलालों ने पूछताछ में बताया है कि उनकी ड्यूटी भरौली तिराहे और कोरंटाडीह चौकी के सामने से निकलने वाले ट्रकों से वसूली करने के लिए लगती है. इसी वसूली में मिली रकम को डायरी में नोट किया जाता है, लेकिन वसूली के दौरान वह कुछ रकम बिना रजिस्टर में ही दर्ज किए अपनी जेब में भी रख लेते हैं. ऐसे में हरेक दलाल रोजाना डेढ़ से दो हजार रुपये कमा लेते थे. इसी प्रकार मौके से पकड़े गए सिपाहियों ने बताया कि बताया कि इन दोनों स्थानों पर दलालों और सिपाहियों की ड्यूटी रोज शाम को इंस्पेक्टर खुद ड्यूटी लगाते हैं.

एक रात में दरोगा की कमाई 25 हजार रुपये

जिस सिपाही या हेड कॉन्स्टेबल की यहां ड्यूटी लगती है, वह बहुत भाग्यशाली होता है. इन दोनों पोस्ट में से किसी पर भी ड्यूटी मिल जाए तो वह सिपाही या हेड कॉन्सटेबल कम से कम 10 से 15 हजार रुपये तो एक रात में पीट ही लेता है. ऐसे में यहां ड्यूटी के लिए हर सिपाही अपने कोतवाल की खुशामद करता रहता है. इसी प्रकार चौकी इंचार्ज यानी दरोगा की भी कमाई 20 से 25 हजार रुपये तक रुपये रोज हो जाती है. चूंकि रात भर वसूली के बाद पूरी रकम इंस्पेक्टर के पास जमा होती है. सिपाही से लेकर दरोगा तक का हिस्सा इसमें से निकालने के बाद यह रकम करीब 3 से साढ़े तीन लाख बचती है. इस रकम का बंटवारा परसेंटेज के हिसाब से होता है. यह परसेंटेज कप्तान से लेकर इंस्पेक्टर तक का होता है.

मुखिया की जानकारी में होता है पूरा खेल: पूर्व पुलिस अफसर

पकड़ी गई डायरी में यह तो विवरण नहीं मिला कि कितने परसेंट कप्तान का और कितना एडिशनल एसपी से लेकर सीओ का है, लेकिन इतना विवरण जरूर है कि इसके आधार पर हिसाब से आसानी से लगाया जा सकता है. रिटायर्ड डिप्टी एसपी पीपी कर्णवाल के मुताबिक थानों में पोस्टिंग के दौरान इस तरह की चीजें तो होती ही हैं. बड़ी बात यह कि इसमें ऐसा कुछ नहीं है, जो जिला पुलिस के मुखिया को पता ना हो. सबकुछ मुखिया की जानकारी में होता है और उनकी सहमति से होता है. उन्होंने बताया मलाईदार थानों और चौकियों में पोस्टिंग ही ‘खास’ लोगों की होती है.

 मलाईदार थानों में ‘खास’ लोगों की होती है पोस्टिंग

उधर, बलिया पुलिस के ही अति विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक इस तरह की धांधली की शुरुआत किसी भी थाने या चौकी पर कोतवाल या चौकी इंचार्ज की पोस्टिंग से ही शुरू हो जाती है. दरअसल बलिया में नरही, बैरिया, मनियर, उभांव समेत कई थाने ऐसे हैं, जिनकी गिनती मलाईदार थानों में होती है. इन थानों में उन्हीं कोतवालों की तैनाती होती है, जो सबसे ज्यादा एकमुश्त चढ़ावा देते हैं और फिर हर महीने कम से कम एक अच्छी खासी चढ़ावा चढ़ाने के लिए हामी भरते हैं. यह व्यवस्था काफी पहले से है, हालांकि पहली बार एडीजी वाराणसी और डीआईजी आजमगढ़ की रेड में इसकी पुष्टि हुई है.

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