ललित कला विभाग एवं मीरा एजुकेशन सोसाइटी के तत्वाधान में सात दिवसीय बौद्ध धर्म पर आधारित मुखौटा कार्यशाला का उद्घाटन डॉ० शत्रुघ्न प्रसाद एवं सुचिता शर्मा ने विभाग के सभागार में दीप प्रज्वलित कर किया।
कार्यक्रम में डॉ सुचिता शर्मा ने मुखौटा बनाने की पद्धति पर विस्तार से चर्चा की उन्होंने बताया कि मुखौटा कितने प्रकार के होते हैं। उन्होंने कहा कि मुखौटा देश-विदेश में भी बनते रहे हैं। इस अवसर पर डॉ शत्रुघ्न प्रसाद ने कहा की मुखौटा का प्रचलन सर्वप्रथम प्रागैतिहासिक काल में देवी देवताओं को खुश करने हेतु किया गया है उन्होंने बताया कि बुरी आत्माओं एवं शत्रुओं से बचने के लिए मुखौटा का प्रयोग करते हैं ।
दशावतार में बुद्ध नवम अवतार माने जाते हैं बुद्ध का चरित्र नाटकों में प्रयुक्त नहीं होता किंतु लद्धाख भूटान आदि में धार्मिक नृत्य में बौद्ध गुरुओं के धातु के मुखौटे पहने जाते है वहां पर देव मुखौटा विशिष्ट मुखोटे हैं जिनकी पूजा की जाती है उन्होंने बताया कि अधिकांश मुखौटा धातु से बनाए गए। इस अवसर पर डॉ रामराज, डॉ मदन लाल गुप्ता, डॉ सविता यादव आदि लोग उपस्थित रहे।