काशी के लक्खा मेलों में शुमार तुलसी घाट की 'नाग नथैया' में मंगलवार को भारी भीड़ उमड़ी। नटखट कन्हैया अपने दोस्तों के साथ कंदुक क्रीड़ करते नजर आए। अचानक गेंद यमुना बनी गंगा में समा गई ठीक 4:40 बजे कन्हैया कदंब की डाल से गंगा में छलांग लगा दिए।
कन्हैया को देखने के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उन्हें लेकर चिंतित हो गया। इस बीच थोड़ी ही देर में कालिया नाग का घमंड चूर कर नंदलाल उसके फन पर सवार होकर बांसुरी बजाते नजर आए। महज 15 मिनट की इस लीला को देखने के लिए तुलसी घाट पर श्रद्धालु मौजूद रहे। भगवान कृष्ण के लीला को देख खुशी से गदगद श्रद्धालुओं ने श्रीकृष्ण के जयकारे लगाते हुए उनकी आरती उतारी।
तुलसी घाट पर नाग नथैया लीला का अद्भुत आयोजन हुआ। इस लीला में कृष्ण रूपी कलाकार ने पहले क्रीड़ा किया उसके बाद यमुना रूपी गंगा में छलांग लगा दी बाहर आकर सबको दर्शन दिए और सभी ने हर हर महादेव का उद्घोष किया और लीला का समापन हुआ। आपको बता दें कि इस लीला को गोस्वामी तुलसीदास ने शुरू कराया था।
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा भदैनी में लगभग 498 साल पहले कार्तिक माह में श्रीकृष्ण लीला की शुरुआत की थी। यह भक्ति और भाव का ही प्रभाव है कि काशी का तुलसी घाट गोकुल और उत्तरवाहिनी गंगा यमुना में बदल जाती हैं। तुलसीदास द्वारा शुरू की गई इस 22 दिनों की लीला की परंपरा आज भी कायम है। भगवान राम के अनन्य भक्त संत गोस्वामी तुलसीदास ने शिव की नगरी काशी में राम नाम के साथ भगवान कृष्ण को भी लीला के जरिए जन जन तक पहुंचाया। इसमें भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव से लेकर उनके द्वारा किए गए पूतना वध, कंस वध, गोवर्धन पर्वत सहित कई लीलाओं का मंचन किया जाता है। एक माह पहले कृष्ण बलराम और राधिका चयन किया जाता है। संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो विश्वंभरनाथ मिश्रा का कहना है कि तुलसीदास ने इस लीला में सभी धर्मों के भेदभाव को मिटा दिया है। सभी कलाकर अस्सी भदैनी के ही होते हैं। सबसे प्रमुख दीपावली के चार दिन बाद होने वाली नागनथैया अपने आप में अनोखी लीला है। बता दें कि काशी के चार लक्खा मेला प्रसिद्ध हैं। इसमें रथयात्रा का मेला, नाटी इमली का भरत मिलाप, चेतगंज की नक्कटैया और तुलसी घाट की नाग नथैया शामिल है। इसमें से तीन लक्खा मेला तो संपन्न हो गए हैं। एक लाख से अधिक भीड़ आने के चलते इन्हें लक्खा मेला कहा जाता है।