देवी भगवती की आराधना के विशेष पर्व चैत्र नवरात्रि की रविवार से शुरुआत हुई धर्म की नगरी काशी में मां भगवती की विशेष आराधना हुई सुबह से ही भक्त मंदिरों में पहुंचकर मां का दर्शन पूजन किया साथ ही घरों में भी घट स्थापना के साथ विशेष पूजन अनुष्ठान किए गए। चैत्र नवरात्र में मां भगवती के गौरी स्वरूप के दर्शन पूजन का विशेष विधान होता है । चैत्र के नवरात्र में गंगा तट पर विराजमान माता मुखनिर्मलिका गौरी के दर्शन पूजन का विधान है भोर से ही जय जय कार के बीच भक्तों ने हाथों में नारियल ,चुनरी ,मिष्ठान लेकर माता को चढ़ा कर शीश नवाया और परिवार के सुख समृद्धि की कामना की ।
मंदिर के पुजारी उमाशंकर ने बताया कि सदियों से चली आ रही है यह परम्परा चैत्र के नवरात्र में गौरी के रूप में माता मुखनिर्मलिका गौरी का दर्शन पूजन किया जाता है इनके दर्शन पूजन करने से परिवार में सुख शांति बनी रहती है लोग निरोग रहते है माता बड़ी दयालु है सबकी रक्षा करती है भोर से ही भक्तों ने मंदिर में पहुंच कर माता का आशीर्वाद लिया मत्था टेका।
इसी कड़ी में मां भगवती के दुर्गा स्वरूप के दर्शन पूजन के क्रम में प्रथम दिन माता शैलपुत्री देवी का दर्शन पूजन किया गया। जहां खुद शिव विराजमान रहते हैं वहां से आदि शक्ति कैसे दूर हो सकती है। शिव की नगरी काशी में इसका सबसे बड़ा उदाहरण देखने को मिलता है। बनारस में एक ऐसा मंदिर है जहा पर खुद मां शैलपुत्री विराजमान है और चैत्र नवरात्र के पहले दिन भक्तों को साक्षात दर्शन देती है। सिटी स्टेशन से चार किलोमीटर दूर स्थित मां शैलपुत्री के मंदिर में नवरात्र के पहले दिन आस्था का समन्दर उमडा है।
मंदिर के पुरोहित ने बताया कि राजा शैलराज के यहां पर माता शैलपुत्री का जन्म हुआ था उनके जन्म के समय नारद जी वहां पर पहुंचे थे और कहा था कि यह पुत्री बहुत गुणवान है और भगवान शिव के प्रति आस्था रखने वाली होगी। इसके बाद जब माता शैलपुत्री बड़ी हुई तो वह भ्रमण पर निकल गयी। मन में शिव के प्रति आस्था थी इसलिए वह उनकी नगरी काशी पहुंची। यहां पर वरुणा नदी के किनारे की जगह उन्हें बहुत अच्छी लगी। इसके बाद माता शैलपुत्री यही पर तप करने लगी। कुछ दिन बाद पिता भी यहां आये तो देखा कि उनकी पुत्री आसन लगाकर तप कर ही है इसके बाद राजा शैलराज भी वही पर आसन लगा कर तप करने लगे। बाद में पिता व पुत्री के मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर में नीचे पिता राजा शैलराज शिवलिंग के रुप में विराजामन है जबकि उसी गर्र्भगृह में माता शैलपुत्री उपर के स्थान में विराजमान है। उन्होंने बताया कि मा शैलपुत्री ने फिर से पार्वती के रुप में जन्म लिया था और फिर उनका महादेव से विवाह हुआ था।
माता के दर्शन के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं और कई किलोमीटर लंबी लाइन लगती है। माता को भक्त लाल फूल, चुनरी व नारियल का प्रसाद चढ़ाते हैं। सुहागिन यहां पर सुहाग के सामान भी चढ़ाती है। धार्मिक मान्यताओं की माने तो किसी के दांपत्य जीवन में परेशानी है तो यहां पर दर्शन करने से उसकी सारी परेशानी दूर हो जाती है। इसके अतिरिक्त माता अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करने के साथ उनकी मुराद पूरी करती है। माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है और माता के दाएं हाथ में त्रिशुल व बाएं हाथ में कमल रहता है।