गौतम का वह द्वंद्व जिसने उन्हें विचलित कर दिया। इच्छामति के प्रश्नों ने तथागत का भ्रम तोड़ उन्हें यह मानने पर विवश कर दिया कि कोई भी सत्य अंतिम नहीं। सत्य एक समय से दूसरे समय के साथ विस्तारित है। वैसे ही जैसे कामनाएं विस्तारित हैं। तब उन्हें कहना पड़ा निर्वाण मनुष्य का अंतिम सत्य नहीं और न ही वह अंतिम बुद्ध हैं।
भारतेंदु नाट्य अकादमी रंग मंडल के कलाकारों की ओर से गुरुवार को हिंदी रंगमंच दिवस पर कबीरचौरा स्थित नागरी नाटक मंडली में मंचित नाटक 'निर्माण से निर्वाण तक' ऐसे कई सवालिया निशान छोड़ गया। उड़िया नाटककार विजय मिश्र की कृति 'तटनिरंजना' पर आधारित नाटक में संवाद के अनुकूल अभिनयात्मक प्रभाव उत्पन्न करने के लिए निर्देशक विपिन कुमार के प्रयोगों से दृश्य प्रभावी हुए। दर्शक दीर्घा का मंचीय उपयोग संतुलित रहा। गौतम्र बने प्रखर पांडेय और पवन शर्मा दोनों ने प्रभावित किया। इच्छामती की भूमिका में अप्सरा खान और नीललोहित बने प्रदीप शिवहरे का अभिनय, संवाद संप्रदेषण अन्य पात्रों की तुलना में विशेष रहा।
भारतेंदु नाट्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. रतिशंकर त्रिपाठी ने आगतों का स्वागत गिया। विशिष्ट अतिथि नागरी प्रचारिणी सभा की सभापति डॉ. अनुराधा बनर्जी, उपशास्त्रीय गायिका विदुषी सुचरिता गुप्ता, डॉ. नीरजा माधव, राज्यमंत्री रवींद्र जायसवाल, राज्यमंत्री डॉ. दयाशंकर मिश्र का मंच पर सम्मान किया गया।