लंका स्थित गंगोत्री बिहार में आयोजित विराट हिंदू सम्मेलन में वक्ताओं ने राष्ट्र निर्माण में मातृशक्ति की भूमिका और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के संकल्पों पर विशेष जोर दिया। सम्मेलन में बड़ी संख्या में साधु-संत, सामाजिक कार्यकर्ता और सनातन धर्म से जुड़े लोग उपस्थित रहे।काशी सुमेरु पीठ के शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने अपने संबोधन में कहा कि प्राचीन काल से ही भारत की मातृशक्ति ने अपने मातृत्व, कृतित्व और नेतृत्व के माध्यम से समाज को दिशा देने का कार्य किया है।
उन्होंने कहा कि हिंदू समाज की मजबूती का आधार संस्कारवान माताएं हैं और यदि मातृशक्ति कमजोर हुई तो पूरा समाज कमजोर हो जाएगा।शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने जीजाबाई का उदाहरण देते हुए कहा कि आज आवश्यकता है कि माताएं अपने बच्चों को शिवाजी जैसे वीर, राष्ट्रभक्त और संस्कारी व्यक्तित्व के रूप में तैयार करें। उन्होंने परिवारों से आह्वान किया कि घर की महिलाओं को सामाजिक, सांस्कृतिक और वैचारिक कार्यक्रमों से जोड़ा जाए, ताकि वे केवल सीमित गतिविधियों तक न रहकर समाज और राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा सकें।
उन्होंने गार्गी, मैत्रेयी, अहिल्याबाई होल्कर और रानी लक्ष्मीबाई जैसी महान विभूतियों का स्मरण करते हुए कहा कि हिंदू संस्कृति और संस्कारों की धुरी सदैव मातृशक्ति रही है। सम्मेलन में यह संदेश दिया गया कि प्रत्येक घर में संघ का स्वयंसेवक हो और मातृशक्ति संस्कारों की वाहक बनकर समाज को मजबूत करे।विराट हिंदू सम्मेलन में वक्ताओं ने एकजुट होकर राष्ट्रहित में कार्य करने और सनातन मूल्यों को सुदृढ़ करने का संकल्प भी लिया।

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