संतान और आरोग्य की कामना से श्रद्धालुओ ने लोलार्क षष्ठी पर लोलार्क कुंड में डुबकी लगायी। लाखों की संख्या में पहुँचे श्रद्धालुओ ने कुंड में स्नान किया। स्नान हेतु बुधवार दोपहर से ही पूर्वांचल समेत देश भर के राज्यों से श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था। गुरुवार ब्रह्ममुहूर्त से ही लोलार्क कुंड पर स्नान चल रहा है। बुधवार को 11 बजे के बाद षष्ठी तिथि आरंभ होते ही श्रद्धालुओं ने लोलार्क कुंड में स्नान शुरू कर दिया। भगवान आदित्य की कृपा के लिए श्रद्धालुओं ने कुंड में डुबकी लगाई और संतति की कामना की। बुधवार देर शाम तक 20 हजार से अधिक लोगों ने लोलार्क कुंड में स्नान किया।
वहीं, दूसरी तरफ उदया तिथि के स्नान के लिए श्रद्धालुओं का पहुंचने का सिलसिला भी जारी था। कुंड से लेकर गली और सड़क तक श्रद्धालु स्नान के लिए कतारबद्ध हो गए थे। शाम होते-होते एक कतार सोनारपुरा से आगे तो दूसरी कतार गंगा घाट की तरफ बढ़ चली थी। घाटों पर ही श्रद्धालुओं ने चूल्हा जलाकर भोजन की तैयारियां भी शुरू कर दी थीं। स्थानीय लोगों ने भी श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अपने-अपने घरों के दरवाजे खोल दिए थे। किसी ने पानी का इंतजाम किया तो किसी ने चाय का।
श्रद्धालुओं की कतार के कारण अस्सी और भदैनी की गलियों में जाम जैसी स्थिति हो गई। लोलार्केश्वर महादेव मंदिर के महंत रमेश पांडेय ने बताया कि लोलार्क कुंड में स्नान के बाद लोलार्केश्वर महादेव की पूजा का विधान है। यह विश्व का इकलौता शिवलिंग है जिसका अर्घा पूरब मुखी है। मान्यता है कि भगवान सूर्य ने तपस्या के बाद स्वयं इस शिवलिंग को यहां स्थापित किया था। यहां की गई पूजा सूर्य भगवान को पहुंचती है लेकिन उसका फल उन्हें महादेव देते हैं।
लोलार्क कुंड के प्रधान पुजारी रमेश कुमार पांडे के मुताबिक लोलार्क षष्ठी के दिन लोलार्क कुंड में स्नान करने से संतान की प्राप्ति का फल प्राप्त होता है। साथ ही चर्म रोगों का भी निवारण होता है। मान्यता है कि सूर्य भगवान का मन काशी के दर्शन से अत्यंत विस्मृत हो गया था। इस कारण ही वहां पर सूर्य का नाम लोलार्क पड़ गया। काशी के दक्षिण दिशा में असि-संगम के समीप ही लोलार्क विराजमान हैं। अगहन मास के किसी रविवार को सप्तमी या षष्ठी तिथि को लोलार्क की यात्रा करके मनुष्य समस्त पापों से मुक्ति पा जाता है।