एक अहंता जहां जगी, भव पाश बिछे, साम्राज्य बने, प्राचीर नरक के वहीं खिंच गए। यह पंक्तियां उस संवाद की हैं जिसने सम्राट अशोक को भिक्षु बना दिया। ऐतिहासिक कलिंग युद्ध के बाद सम्राट के हृदय में उपजे झंझावतों को शांत कर दिया। वह सम्राट से भिक्षु बन गया।सदियों पुराने इस वृत्तांत को काशी के लोगों ने महसूस किया। अवसर था महान साहित्यकार अज्ञेय की कालजयी रचना 'उत्तर प्रियदर्शी' के मंचन का ।
आश्विन नाट्य महोत्सव के तहत नागरी नाटक मंडली के मंच पर रुद्राक्षी फाउंडेशन के मंझे हुए कलाकारों ने इसका मंचन किया। नाटक में एक सम्राट के अहंकार से नरक तुल्य बनी धरती और उसी में फंसकर उसे विचलित होने के दृश्य ने झकझोरा । प्रख्यात भरतनाट्यम नर्तक डॉ. प्रेमचन्द्र होम्बल के निर्देशन में बौद्ध भिक्षु के रूप में राजेश्वर त्रिपाठी और सम्राट अशोक की भूमिका में अशोक पांडेय ने दर्शकों को अंत तक बांधे रखा।