लोक आस्था के महापर्व डाला छठ पर आस्ताचलगामी भगवान सूर्य को दिया गया अर्घ्य, छठी मैया में आस्था रखने वालों की गंगा घाट पर उमड़ी अपार भीड़

सूर्य उपासना के महापर्व डाला छठ की धर्म नगरी काशी में घूम रही। वैसे तो यह बिहार का प्रमुख पर्व माना जाता है लेकिन अब इसकी प्रसिद्धि देश दुनिया में हो चुकी है और न केवल यूपी बिहार बल्कि विदेश में भी छठ महापर्व किया जाता है छठ मैया में अपार श्रद्धा रखने वाले श्रद्धालु इस कठिन व्रत को बहुत मनोयोग से करते हैं जितना कठिन यह व्रत है उससे कहीं अधिक कठिन इन चार दिनों के विधि विधान होते हैं माना जाता है की छठी मैया की पूजा में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है .

वही इस पर्व की शुरुआत नहाए खाए के साथ होती है दूसरे दिन खरना प्रसाद के साथ ही निर्जल उपवास शुरू हो जाता है और तीसरा दिन मुख्य अर्घ्य आस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है। छठ महापर्व केवल ऐसा पर्व है जिसमें आस्ताचलगामी भगवान सूर्य की उपासना होती है। अगले दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य‌ देने के साथ ही इस कठिन व्रत का समापन होता है। छठ पर्व की तैयारी वैसे तो बहुत दिनों से होती है लेकिन शनिवार की पूरी रात्रि व्रतियों ने प्रसाद बनाया और तैयारी में सभी लोग जुटे रहे घरों में महिलाएं छठ मैया का गीत गाते हुए प्रसाद बनाने में लगी रहीं। 

प्रकृति से प्रेम, सूर्य और जल की महत्ता का प्रतीक छठ पर्व पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। इस पर्व पर चढ़ाए जाने वाला केला, दीया, सूथनी, आंवला, बांस का सूप व डलिया किसी ने किसी रूप में हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है।रविवार को सूर्य षष्ठी यानी डाला छठ पर्व पर गंगा घाटों पर आस्था का जन सैलाब उमड़ पड़ा। रविदास घाट अस्सी घाट तुलसी घाट, शिवाला घाट दशाश्वमेध, शीतला घाट , गायघाट भैसासुर घाट सहित काशी के सभी छोटे बड़े घाटों पर छठ पर्व मनाने हेतु व्रतियों संग उनके परिजन पहुंचे। इसके साथ ही बरेका स्थित सूर्य सरोवर के साथ शहर के छोटे कुंडो तालाबों पर भी इस पूजन को किया गया इस पर्व में जहां एक और प्रसाद मे ठेकुआ का महत्व है तो वही छठी मैया की महिमा को दर्शाते हुए उनके गीत भी बेहद अहम होते हैं। 

काशी के गंगा घाटों पर छठ मैया मे आस्था का रंग बेहद सुर्ख नजर आया। दोपहर से ही घाटों पर लोगों के पहुंचने का क्रम प्रारंभ हो गया। व्रतियों सहित सभी लोगों में छठ माता के पर्व को मनाने के लिए गजब का उत्साह देखने को मिला जगह-जगह महिलाओं की टोलियां छठी मैया के गीत गाती और उन गीतों के माध्यम से अपनी अरज लगाती नजर आयी। 

इस पर्व को लोकआस्था का महापर्व कहा जाता है। क्योंकि छठी मैया की महिमा से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। मुख्य रूप से यह पर्व सूर्य उपासना के लिए किया जाता है, ताकि पूरे परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहे। साथ ही यह व्रत संतान के सुखद भविष्य के लिए भी किया जाता है। मान्यता है कि छठ का व्रत करने से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

वही काशी मैं लोगों ने उल्लास के साथ इस पर्व को मनाया। छठ मैया के प्रति अपार श्रद्धा लिए महिलाएं गंगा घाटों पर पहुंची । और सूर्यास्त होने का इंतजार करते नजर आयी।वहीं जैसे ही सूर्य आस्त होना शुरू हुए अरघ देने का क्रम शुरू हो गया . जल में खड़ी महिलाएं इसके साथ ही घाट की सीढ़िया पर भी खड़े होकर महिलाओं ने प्रसाद लिए परिक्रमा करते हुए छठ माता और सूर्य देवता को नमन किया और अरघ दिया। गंगा घाट पर यह नजारा बेहद ही मनोरम रहा। छठ मैया के जयकारे लगाते रहे।

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