काशी हिंदू विश्वविद्यालय में विभिन्न जाति धर्म संप्रदाय देश विदेश के विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विद्यालय है। यहां पर गरीब और निम्न तबके के विद्यार्थी पठन-पाठन करके देश के साथ ही विदेश राज्य परिवार और विश्वविद्यालय का नाम रोशन करने का काम करते हैं। कुछ ऐसा ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय के बंगला विभाग की एक छात्रा ने कर दिखाया है। यह छात्र झारखंड के बहुत ही पिछड़े जनजाति से बिलॉन्ग करती है। जो अपनी जनजाति से शोध कार्य करने वाली पहली महिला बनी है। वह विद्यार्थी झारखंड के संथाली जनजाति से बिलॉन्ग करती है।
बता दे की संथाल भारत का मुंडा जातीय समूह की एक प्रमुख जनजाति है। वे मुख्य रूप से भारतीय राज्यों झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार और असम में रहते हैं, यह अल्पसंख्या में नेपाल और बांग्लादेश में भी पाये जाते हैं। ये मूल रूप से संथाली भाषा बोलते हैं। बता दे कि इन लोगों के समूह में शिक्षा का बहुत ही अभाव होता है। लोग पढ़ाई लिखाई करने के लिए काफी दूर तक यात्रा करना होता है जिसके कारण ज्यादातर लोग कम पढ़े लिखे होते हैं। ऐसे में बीएचयू बांग्ला विभाग में संथाली जनजाति से निकलकर शोध कार्य करने वाली प्रथम छात्रा इंद्राणी मुर्मू है। शोध कार्य के साथ ही यह छात्र काफी खुश है और इसका श्रेय अपने गुरुजनों और परिजनों को देना चाहती है। शोध कार्य कराने वाले प्रोफेसर प्रकाश कुमार माहती भी काफी खुश और प्रसन्न नजर आ रहे हैं और इस छात्रा के शोध कार्य पुर्ण होने के साथ ही छात्र को बधाई और शुभकामनाएं दिया है। उन्होंने कहा कि शोध कार्य करने के साथ ही छात्र अपने जनजाति के लोगों को शिक्षित करेगी और और एक प्रेरणा स्रोत बनेगी।