नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं। माँ की आठ भुजाएँ हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। माँ का वाहन शेर है। वही काशी में मां का मंदिर दुर्गा कुंड मंदिर के नाम से विख्यात है। जहां सुबह से ही मां के दर्शन पूजन हेतु भक्तों का ताता लगा रहा। बड़ी संख्या में श्रद्धालु कतारबद्ध होकर मां का दर्शन पूजन करते रहे साथ ही मां को नारियल गुड़हल का माला इत्यादि अर्पित कर जीवन मंगल की कामना की। वही इस अवसर पर पूरे मंदिर परिक्षेत्र में सुरक्षा के व्यापक प्रबंध रहे। इसके साथ ही क्षेत्र में माला फूल चुनरी आदि पूजन सामग्री की दुकानें सजी रही।
इसी कड़ी में मां के गौरी स्वरूप की उपासना के क्रम में चैत्र नवरात्र की चतुर्थी तिथि पर मां श्रृंगार गौरी के दर्शन पूजन का महत्व है। नवरात्र के चौथे दिन ज्ञानवापी स्थित श्रृंगार गौरी के दर्शन पूजन हेतु भक्त पहुँचे। भोर से ही भक्त दरबार मे पहुँच कर जय जय कार के बीच दरबार मे हाजिरी लगा कर सुख समृद्धि की कामना करते रहे। इस अवसर पर लाल चुनरी गुड़हल की माला, नूतन वस्त्र, आभूषणों से मां का भव्य श्रृंगार किया गया। भक्त मां की मनोरम झांकी का दर्शन कर निहाल हो उठे। मंदिर के महंत द्वारा मां के दर्शन पूजन के महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया।