संकट मोचन संगीत समारोह के सौंवें संस्करण की चौथी निशा मे भी हनुमत लला को संगीतार्पण का क्रम जारी रहा। गुरुवार को भरतनाट्य से शुरू हुआ प्रस्तुतियों का क्रम शाकिर खान के सितार वादन से अपने उत्तरार्द्ध तक पहुंचा।दिल्ली की रमा वैद्यनाथन के भरत नाट्यम ने तुलसी दास के पद ‘श्रीराम चरण सुखदायी’ के बाद अर्द्धनारीश्वरअष्टम के माध्यम से शिव शक्ति स्वरूप को नृत्य में उतारा। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के अंश प्रदर्शन को उनकी भंगिमाओं ने विशेष रूप से प्रभावी बना दिया। विदुषी यामिनी कृष्ण मूर्ति और विदुषी सरोजा वैद्यनाथन की शिष्या रमा ने हनुमान भक्ति पर आधारित अभंग पर आधारित नृत्य से विराम दिया। दूसरी प्रस्तुति लेकर मंचासीन हुए एनआरआई ठाकुर चक्रपाणि सिंह। कच्छपी वीणा का वादन किया। राग किरवानी की अवतारणा का आरंभ उन्होंने आलाप से किया। दरभंगा के मूल निवासी ठाकुर चक्रपाणि न्यूयार्क लौटने से पहले कच्छपी वीणा वादन करते हुए, विदेशी रूप और स्वरूप में परिमार्जित हो चुके प्राचीन वैदिक वाद्ययंत्र को पुन: भारतीय होने का गौरव दिलाने की अघोषित मुहिम में जान फूंक रहे थे। आलापचारी और रागदारी की बानगी पेश करते हुए जोड़ और झाला में अपने गुरुजनों की शिक्षा का प्रदर्शन किया।
तृतीय क्रम में पुणे के पं. अजय पोहनकर ने ठुमरी के फूलों से संकट मोचन का सांगीतिक श्रृंगार किया। उनकी गायिकी में पुरबी अंग का प्रतिनिधित्व था तो पंजाबी अंग की गायिकी भी साथ साथ झलक रही थी। विदुषी गिरिजा देवी के खास अंदाज वाली बनासरी ठुमरी की खास अदा भी बनासियों को आनंदित कर गयी। किराना और ग्वालियर घराने की रागदारी के दर्शन उन्होंने राग दरबारी की अवतारणा में कराए। छोटा ख्याल के बाद ठुमरी पर अपना गायन केंद्रित रखा। अपने लोकप्रिय एलबम ‘ पिया बांवरी’ की बानगी भी पेश की।पुणे के शाकिर खान ने सितार वादन की पारंपरिक धारा प्रवाहित की। राग मालकौंस के सुरों को उनकी मांग के अनुरूप तारों से निकाल कर श्रोताओं के हृदय में उतार दिया। जोड़ वादन के विविध पक्षों को बखूबी सामने रखा। कोमल और तीव्र स्वरों का संयम-संतुलन दोनों ही प्रभावित करने वाला रहा। विलम्बित मध्य लय और द्रुत तीन ताल में गतों की सुरीली अदायगी की। अंत में मिश्र खमाज में राम धुन बजा कर वादन को विराम दिया।