नाग नथैया लीला के लिए तुलसीघाट पर तैयारी को दिया जा रहा अंतिम रूप

तुलसीघाट पर आयोजित होने वाली नाग नथैया लीला की तैयारी अंतिम चरण पर है। इस अलौकिक और पारम्परिक क्षण को साकार करने की तैयारी हालांकि बहुत दिनों से हो रही है। लेकिन आज लीला के संरक्षक व अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के महंत प्रो . विश्वम्भरनाथ मिश्र की देखरेख में इसे अंतिम रूप देने के लिए लीला कर्मी कलाकार दिन भर लगे रहे। इस लीला का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी किया हैं। नाग के फन का रंग-रोगन करने के बाद उसे नट- बोल्ट के सहारे बांस पर कस दिया गया। नाग की पूंछ का निर्माण कपड़े में पुआल भर कर किया गया। 

इसके बाद इस कृत्रिम पूंछ को नाग के फन से जुड़े बांस पर रख देने का कार्य भी सम्पन्न हो गया।श्रीकृष्ण लीला के क्रम में काशी के लख्खा मेले में शुमार तुलसीघाट की नाग नथैया लीला शुक्रवार को होगी। श्रीकृष्ण के प्रतिरूप ठीक शाम 4.40 बजे घाट किनारे लगाए कदम की डाल से गंगा में छलांग लगाते हैं और कालीया नाग को नथ कर बाहर बांसुरी बजाते निकलते हैं। उस समय लीला स्थल का माहौल ऐसा हो जाता है कि गंगा यमुना जैसी और आसपास का स्थल ब्रज - सा हो जाता है। बाबा काशी विश्वनाथ की नगरी अविनाशी काशी में गंगा का तट वृंदावन बिहारी लाल की जयकार से गुंजायमान हो उठता है। लीला के इस एक क्षण को अपने आंखों में समेटने के लिए लाखों लीला प्रेमियों की पलकें झपकना बन्द कर देती हैं। समय जैसे ठहर जाता है।

लीला के संरक्षक व अखाड़े के महंत प्रो.विश्वम्भर नाथ मिश्र बताते है कि इस लीला की विशेषता है कि कदम्ब की डाल हर वर्ष संकट मोचन मंदिर में स्थित जंगल - क्षेत्र से काटकर लाई जाती है। चूंकि पेड़ हरा काटा जाता है इसलिए उसके बदले में हर वर्ष कदम्ब के पौधे को मंदिर के जंगल में लगाया जाता है। क्योंकि शास्त्रों में माना जाता है कि हरा पेड़ काटना पाप है। इस लिए उसके प्रायश्चित रूप में कदम्ब के पौधे का आरोपण किया जाता। महंत प्रो. मिश्र बताते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने कालीय नाग का दमन करके यमुना नदी के विषैले जल को अमृत कर जल प्रदूषण से मुक्ति दिलाई थी। आज भी नाग नथैया लीला नदियों को प्रदूषण से बचाने का संदेश देती है।

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