मां कुष्मांडा के दरबार में विराजमान बाबा काल भैरव का हुआ विशेष श्रृंगार

दुर्गा कुंड स्थित मां कुष्मांडा के मंदिर में विराजमान बाबा काल भैरव का भैरव अष्टमी के उपलक्ष में भव्य श्रृंगार व आरती का आयोजन हुआ।भारत में भैरव की अनेक विख्यात मंदिरें हैं, लेकिन काशी विश्वनाथ मंदिर से पौने दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित काशी का काल भैरव मंदिर सर्वप्रमुख माना जाता है।भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक राग का नाम इन्हीं के नाम पर भैरव रखा गया है।…इसे कालभैरव जयन्ती, भैरवाष्टमी, भैरव जयंती, भैरव अष्टमी, कालाष्टमी आदि नामों से भी जाना जाता है। शत्रुओं के नाश और जीवन में सफलता, शांति व समृद्धि प्राप्ति के लिए मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव की पूजा करने की पौराणिक परिपाटी है।

शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्याह्न काल में भगवान शिव के रुधिर अर्थात रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई थी। इस तिथि को शिव का इस भूमि पर काल भैरव रूप में अवतरण होने के कारण इस दिन को कालभैरव अष्टमी कहा जाता है। इसी कड़ी में बच्चा तिवारी से बात करने पर उन्होंने बताया की यह मंदिर तो बहुत प्राचीन है यहां मां कुष्मांडा के दर्शन के पश्चात बाबा का दर्शन करना बहुत जरूरी है जो मां के दर्शन के पश्चात मां का दर्शन नहीं करता उसका दर्शन अधूरा माना जाता है ।भैरव बाबा के दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सारे पाप और कष्ट खतम हो जाते है मनुष्य सत कर्मों की तरफ बढ़ता है जिससे उसका विकास निश्चित होता है ।

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