संकट मोचन संगीत समारोह के शताब्दी समारोह में मालिनी अवस्थी ने प्रस्तुति दी। तीसरी निशा के पांचवीं प्रस्तुति के रूप में संकट मोचन के दरबार में मालिनी अवस्थी ने राग वृंदावनी सारंग में सादरा से की। जिसमें उन्होंने "शेष फन डगमग लंका हलचल भयो" गीत से अपने प्रस्तुति की शुरुआत की।
इस गीत में उन्होंने रावण और मंदोदरी के संवाद का जिक्र किया। उनकी गीत पर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। वहीं मालिनी अवस्थी ने कहा कि यह बहुत ही सुखद अनुभूति है। संकट मोचन के दरबार में होने वाला यह ऐतिहासिक उत्सव है। हम सभी के लिए यह बेहद गर्व की बात है।
बाबा के दरबार में आकर हो रही सुखद अनुभूति
मालिनी ने मंच से कहा कि पहले हम यहां श्रोता बनकर आते थे, बड़े-बड़े कलाकारों को सुनते थे। अब कलाकार के रूप में गा रहे हैं। सबसे बड़ी बात यहां कोई भेद नहीं है। यहां तो बड़ा हो या छोटा सभी जमीन पर बैठकर गीत का आनंद लेते हैं। उन्होंने आगे कहा जहां खुद हनुमान जी सुन रहे हों वहां का मंच नमन करने योग्य है।मालिनी अवस्थी ने अपनी गीत की शुरुआत वीर रस से की और फिर वह श्रृंगार रस के मधुर गीत से लोगों को झुमाया। उन्होंने अपना दूसरा गीत दादरा सुनाया, जो ठेठ बनारस रचना जिसके बोल थे "अभही तो गाईला साइयां" है।
इस गाने में हर कोई तबले और हारमोनियम की जुगलबंदी और मालिनी अवस्थी के मधुर दादरी पर झूम रहा था। अपने गीत की श्रृंखला में उन्होंने तीसरी प्रस्तुति चैत्री के रूप में दी। जिसमें उन्होंने "निंदिया न आवे हो रामा" और चौथी और अंतिम प्रस्तुति उन्होंने स्वर्गीय पंडित विद्या निवास मिश्र को याद करते हुए कहा कि उनके द्वारा रचित एक लोक गीत जिसमें भगवान राम बनवास में हैं और माता कौशल्या रानी जाता पीस रही हैं। उसी भाव को दर्शाया गया है।
जिसमें उन्होंने लोक गीत गाया कि "मोरे राम के भीगे मुकुटवा..लौउट घर आवा हो राम" गीत के साथ उन्होंने अपने भक्तिमय प्रस्तुतियों का समापन किया और संकट मोचन मंदिर के दरबार में उन्होंने श्रोताओं और पवन पुत्र हनुमान से आशीर्वाद मांगा। तबला पर पं. शुभ महाराज, हारमोनियम पर पं. धर्मनाथ मित्र तथा तानपुरा पर अवधी एवं स्मिता ने संगत की।