मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में एक केस की सुनवाई की. जिसमें कोर्ट ने कहा कि विवाहित पुरुष और अविवाहित महिला के बीच लिव-इन रिलेशनशिप "शादी की प्रकृति" का नहीं है, जो पक्षों को अधिकार देता है। इस दौरान हाई कोर्ट ने कहा कि किसी कानून के अभाव में, लिव-इन पार्टनर दूसरे पक्ष की संपत्ति का उत्तराधिकार या विरासत नहीं मांग सकता।
जस्टिस आरएमटी टीका रमन ने एक ऐसे शख्स को राहत देने से इनकार कर दिया, जो शादीशुदा होने के बावजूद एक महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में आ गया था. इस मामले में कोर्ट ने कहा कि शादी की प्रकृति वाले रिश्ते के लिए यह जरूरी है कि युवक समाज में खुद को पति-पत्नी की तरह पेश करें और विवाह करने के लिए योग्य हों. कोर्ट ने केस की सुनवाई के दौरान कहा कि चूंकि लिव-इन रिलेशनशिप के समय पुरुष और उसकी पत्नी का विवाह अभी भी मौजूद था, इसलिए लिव-इन रिलेशनशिप को शादी की तरह नहीं माना जा सकता है।