पति की लंबी आयु की कामना के साथ सुहागिन महिलाओ ने किया वट सावित्री पूजन, वट वृक्ष की परिक्रमा कर सुनी कथा

नगर में वट सावित्री पूजन की धूम रही। सनातन धर्म में वट सावित्री का व्रत बहुत ही शुभ माना जाता है। वेद, पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास में पड़ने वाली अमावस्या महत्वपूर्ण है। इस बार अमावस्या छह जून गुरुवार को रही। इसलिए वट सावित्री व्रत गुरुवार को मनाया गया। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए वट वृक्ष की पूजा करने मे सुबह से ही जुटी रही। 

महिलाए सुबह से ही पारंपरिक परिधानों मे सज धज कर वट वृक्ष के समक्ष पहुँची जहाँ लाल धागा बांध कर वट वृक्ष की परिक्रमा की और विधि विधान से पूजन करें हुए विभिन्न प्रकार के पकवान फल फूल मिष्ठान इत्यादि अर्पित किया। सौभाग्य प्राप्ति के लिए वट सावित्री व्रत रखा जाता है। 

धार्मिक मान्यता है कि ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन ही सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण बचाए थे। इसलिए वट सावित्री व्रत को विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए रखती हैं। इस दिन सुहागन स्त्रियां बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। वट सावित्री व्रत कथा बरगद के पेड़ के नीचे की जाती है। मान्यता है कि बरगद पेड़ की छाल में भगवान विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और इसकी शाखाओं में भगवान शिव वास करते हैं।

वट सावित्री व्रत कथा के बाद वट वृक्ष में 7 बार कलावा लपेटकर बांधा जाता है। वट वृक्ष की 7 परिक्रमा करने को पति-पत्नी के सात जन्मों के सम्बधों से जोड़कर देखा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि बरगद के पेड़ में कलावा बांधने से अकाल मृत्यु भी टल जाती है।

सुहागिन महिलाओं के लिए वट सावित्री का व्रत विशेष महत्व रखता है। पति की लंबी आयु के लिए विवाहित महिलाएं इस दिन निर्जला उपवास भी रखती हैं। इस अवसर पर बाबा भोले की नगरी काशी में वट सावित्री पर्व की धूम रही। काफी संख्या में सुहागन महिलाएं विभिन्न मंदिरों और पूजा स्थलों पर पहुंची जहां पर वट वृक्ष का विधि व्रत पूजन किया। पूजन हेतु महिलाओं की काफी भीड़ रही। पूजन के पश्चात महिलाओं ने इस व्रत के महत्व के बारे में विस्तार से बताया।

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