तीसरी मोहर्रम पर अलम व दुलदुल का कदीमी जूलूस नबाब की ड्योढ़ी औसानगंज से निकला।इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों की शहादत की याद में शिया समुदाय के लोग गम का महीना मोहर्रम मना रहे हैं। ऐसे में शिया बहुल क्षेत्रों में मजलिस और जुलूसों का दौर जारी है। बुधवार की रात औसानगंज स्थित नवाब की ड्योढ़ी से 100 साल पुराना दुलदुल और अलम का जुलूस निकाला गया। जुलूस उठने के पहले मौलाना ने मजलिस को खेताब फरमाया।
जुलूस उठने से पहले मौलाना ने मजलिस को पढ़ते हुए कहा कि 'इमाम हुसैन 2 मोहर्रम को कर्बला के मैदान में पहुंचे थे। यहां उन्होंने इस जमीं के मालिक को बुलाकर इस जमीन को खरीदा था। इराक के इसी मैदान में 61 हिजरी में उन्हें भूखा और प्यासा शहीद कर दिया गया। उनके इस बयान पर लोग जोर-जोर से रोने लगे। मजलिस के बाद जुलूस उठाया गया।
जुसलू उठने पर अंजुमन जव्वादिया ने नौहा-मातम किया। जुलूस नवाब की ड्योढ़ी से उठकर काशीपुरा, नारियल बाजार, दालमंडी, नई सड़क, कालीमहल, पितरकुंडा होते हुए दरगाह फातमान पर देर रात ठंडा हुआ। जुलूस में जगह-जगह अकीदतमंदों ने दुलदुल को दूध और मलीदा खिलाया। इस दौरान सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए थे