शारदीय नवरात्रि में तीसरे दिन चंद्रघंटा देवी की पूजा का महत्व है। देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है।माता चंद्रघंटा का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। माता के तीन नेत्र और दस हाथ हैं। इनके कर-कमल मे गदा, बाण, धनुष, त्रिशूल, खड्ग, खप्पर, चक्र और अस्त्र-शस्त्र हैं, अग्नि जैसे वर्ण वाली, ज्ञान से जगमगाने वाली दीप्तिमान देवी हैं चंद्रघंटा।
शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन चौक क्षेत्र स्थित पक्के महाल की संकरी गलियां शनिवार सुबह से ही श्रद्धा-विश्वास से भरे भक्तों की भीड़ से पटी रही। सुगंधित पुष्पों पत्तियों से मनमोहक श्रृंगार के बाद मंदिर का पट खुलते ही जयकारे लगने लगे और अपनी बारी के इंतजार में खड़े भक्त एक-एक कर मां की झलक पाकर निहाल हो उठे । चौक स्थित प्राचीन माता चंद्रघंटा के मंदिर में मंगला आरती के बाद से दर्शन-पूजन का सिलसिला शुरू हुआ जो देर रात्रि तक जारी रहा । भक्तों की लंबी कतार लगी रही।