उपस्थित जनों ने उमराव जान के मकबरे पर फातिहा पढ़ा तथा माला फूल बढ़ाकर उन्हें श्रद्धाजलि अर्पित की।इस अवसर पर क्लब अध्यक्ष शकील अहमद जादूगर ने बताया कि फैजाबाद में पली बढ़ी उमराव जान किसी परिचय की मोहताज नहीं है बकौल उमराव जान फैजाबाद की
उनके बचपन का नाम अमीरन था तथा नृत्य-गायन की बारिकियां उन्होंने लखनऊ में सीखी और यहां के नवाबों के महल में अपनी नृत्य गायन की प्रतिभा से नवाबी को अपना दीवाना बना दिया। अमीरन को नवाबों ने उमरावजान बना दिया हर जुबां पर बस उमराव जान का ही नाम था। इज्जत और शोहरत उनके कदम छू रही थी। उमराव जान के हुस्नो अदा की बारिकियों को मशहूर निर्देशक मुजफ्फर अली ने परदे पर जहां रेखा को उमरावजान बनाया वहीं दूसरी फिल्म उमरावजान का किरदार एश्वयों ने निभाकर बखूबी पेश कर दुनिया को उनका तसव्बुर कराया जिसे आज भी लोग भूले नहीं हैं। श्रीशकील ने आगे बताया कि अपने अंतिम समय में उमरावजान बनारस आकर अपनी तनहा जिन्दगी गुजारने लगीं।अन्त में शकील ने कहा कि 26 दिसम्बर 1937 को बनारस में अंतिम सांस लेकर अपनी प्रतिभा अपनी शोहरत और इस दुनिया को छोडकर उमराव जान हमेष्श के लिये रूख्सत हो गयीं।बरसी के मौके पर श्शकील ने राज्य सरकार से मांग किया कि उमरावजान के मकबरे के उपर मार्क्स लाइट लगवा दी जाय जिससे उनका मकबरा हमेश रौशन रहे।इस अवसर पर मुख्य रूप से प्रमोद वर्मा, हैदर मौलाई, आफाक हैदर, चिंतित बनारसी, विक्की यादव, बाले शर्मा, मो० राजू