यह मामला उन हृदयविदारक सच्चाइयों को उजागर करता है जहाँ गरीब और असहाय परिवारों के मासूम बच्चों को अंतरराज्यीय मानव तस्करी गिरोह द्वारा अगवा कर लिया गया। यह संगठित गिरोह उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार और राजस्थान में सक्रिय था और बच्चों को दो लाख से दस लाख रुपये में बेचने का व्यापार करता था।
पीड़ित परिवारों के लिए यह सिर्फ एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि अपने खोए हुए बच्चों को वापस पाने और उन्हें न्याय दिलाने का संघर्ष था। इस पूरे संघर्ष में गुड़िया संस्थान के अधिवक्ता अपर्णा भट्ट और गोपाल कृष्ण की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। अगर गोपाल कृष्ण एडवोकेट न होते, तो शायद ये मासूम कभी न्याय की रौशनी न देख पाते।
घटनाओं का विस्तृत विवरण
(1) एफआईआर संख्या 193/2023 थाना भेलुपुर वाराणसी - वादी - संजय कुमार : संजय नामक एक गरीब सफाई मजदूर के चार साल के बेटे रोहित को सोते समय सड़क से उठा लिया गया। प्रारंभ में इसे लापता बच्चे का मामला समझा गया, जब पीड़ित ने इस सन्दर्भ में गुड़िया संथा से संपर्क किया तो गुड़िया के अधिवक्ता गोपाल कृष्ण के अथक प्रयास पर मुकदमा दर्ज हुआ और जांच में यह एक संगठित मानव तस्करी का हिस्सा निकला। गिरफ्तार अभियुक्त संतोष गुप्ता वगैरह ने कबूल किया कि उनका गिरोह देश भर से बच्चों को चुराकर अन्य राज्यों में बेचता है। पुलिस ने विवेचना के दौरान कई अन्य शहरों से गायब बच्चों की भी तस्करी की पुष्टि की और देश भर से कई और बच्चों की बरामदगी और कई अभियुक्तों की गिरफ्तारी की कार्यवाही की।
(2)-एफआईआर संख्या 50/2023 थाना चेतगंज वाराणसी
वादी - समशेर सिंह : एक साल की बेटी मोहिनी को रात में सोते समय इसके पिता समशेर सिंह की गोद से अगवा कर लिया गया था। शमसेर नेभी अपनी बच्ची को खोजने और मुकदमा लिखवाने के लिए गुड़िया संस्थान के वकील गोपाल कृष्ण एडवोकेट से संपर्क किया तब उनकी रिपोर्ट लिखी गई और गुड़िया संस्थान के द्वारा पुलिस को उपलब्ध कराई गई सुचना के आधार पर शमशेर की अबोध बालिका को पश्चिम बंगाल के कोलकाता से प्रख्यात मानव तस्कर अनिल प्रसाद बरनवाल के पास से बरामद किया गया।
(3) एफआईआर संख्या 201/2023 थाना - कैंट वाराणसी.
वादिनी - पिंकी : एक वर्षीय बहुबली नामक बालक को नदेसर कैंट, वाराणसी से रात के समय अगवा किया गया।इस केस में भी यदि अधिवक्ता गोपाल कृष्ण की मदद पीड़ित परिवार को न् मिलती तो उसकी रिपोर्ट न् दर्ज होती. रिपोर्ट दर्ज होने के बढ़ काफी प्रयास पश्चात् उपरोक्त घटना में शामिल गिरोह की महिला सदस्य अनुराधा देवी द्वारा खुलासे के बाद मोहिनी समेत कई बच्चों को झारखंड के विभिन्न इलाकों से बरामद किया गया।
न्याय की राह में गोपाल कृष्ण की भूमिका
जब लोअर कोर्टों गोपाल कृष्ण एडवोकेट की मजबूत पैरवी के कारण अभियुक्तों की बेल ख़ारिज होने के पश्चात् हाई कोर्ट इलाहबाद द्वारा सरसरी तौर पर कई आरोपियों को बेल दे दी गई, और बेल पाने के बढ़ अभियुक्त फरार हो गए तब ट्रायल रुक गया और पीड़ितों को न्याय मिलना मुश्किल दिखने लगा तब गुड़िया संस्थान ने अपने अधिवक्ता अपर्णा भट्ट और गोपाल कृष्ण एडवोकेट के साथ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने पीड़ित परिवारों की ओर से न केवल अपीलें दायर कीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट में यह भी सुनिश्चित किया कि इन मामलों को संगठित मानव तस्करी के व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपर्णा भट्टऔर गोपाल कृष्ण अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत तथ्यों और तर्कों को गंभीरता से लेते हुए उपरोक्त वर्णित तीनों मामले में ज़मानत पर रिहा सभी आरोपियों की जमानत रद्द कर दी तथा हाई कोर्ट इलाहबाद द्वारा अभियुक्तों को ज़मानत देने के तरीके की भरपूर निंदा करते हुए राज्य पुलिस को निर्देशित किया कि वे सभी फरार आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार करें। यह कार्यवाही इस बात का प्रमाण है कि एक प्रतिबद्ध अधिवक्ता किस प्रकार कमजोर वर्ग की आवाज़ बन सकता है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण निर्देश -
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए न केवल आरोपियों की जमानत रद्द की, बल्कि बाल तस्करी से जुड़े मामलों में व्यवस्था सुधारने हेतु निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
1. राज्य सरकार को निर्देश दिया गया कि वह सभी बाल तस्करी से संबंधित मामलों की संवेदनशीलता से जांच सुनिश्चित करे और यह देखा जाए कि पीड़ितों को उचित संरक्षण मिले।
2. मानव तस्करी के मामलों को प्राथमिकता से निपटाने के लिए विशेष अदालतों (Fast Track Courts) की व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया।
3. पुलिस को आदेश दिया गया कि वह सभी आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार करे और यह सुनिश्चित किया जाए कि वे ट्रायल से बच न पाएं।
4. सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को Anti Human Trafficking Units (AHTUs) की स्थापना को मजबूत और पूर्णकालिक बनाने का निर्देश दिया गया, जो सिर्फ मानव तस्करी से संबंधित मामलों को देखें।
5. Central Adoption Resource Authority (CARA) को निर्देश दिया गया कि वह अवैध गोद लेने की प्रक्रियाओं पर नजर रखें और सुनिश्चित करें कि कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त प्रक्रिया से ही बच्चों को गोद लिया जाए।
6. Child Welfare Committees (CWCs) को जागरूक और प्रशिक्षित करने का निर्देश दिया गया, ताकि तस्करी के मामलों में बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि बनी रहे।
7. सभी राज्यों को यह निर्देश दिया गया कि वे “missing children” के मामलों को trafficking के संदर्भ में जांचें, जैसा कि पूर्व के Bachpan Bachao Andolan मामले में निर्देशित किया गया था।
8. अदालत ने यह भी कहा कि अगर कोई NGO या वकील तस्करी के मामलों में सक्रिय रूप से मदद करता है, तो उन्हें राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) के माध्यम से सहयोग और सुरक्षा दी जाए।
9. मीडिया को निर्देशित किया गया कि वह बच्चों की पहचान उजागर न करे और रिपोर्टिंग में संवेदनशीलता बरते।
10. सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि "इस आदेश की एक-एक प्रति भारत के सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और मुख्य सचिवों को भेजी जाए", ताकि पूरे देश में इसका पालन हो।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में इन महत्वपूर्ण बिन्दुओ को भी अपने निर्णय में सम्मिलित किया है
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण (G. ANALYSIS – संक्षेप)
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गहन कानूनी विश्लेषण प्रस्तुत किया, जिसमें निम्नलिखित मुख्य बिंदु शामिल थे:
1. बेल (जमानत) की रियायत न मिलने के कारण:
यह कोई साधारण अपराध नहीं, बल्कि संगठित मानव तस्करी का गंभीर मामला है।
आरोपी अंतरराज्यीय गिरोह के सदस्य हैं, जो बच्चों को चुराकर बेचते थे।
आरोपियों के फरार हो जाने और पुनः अपराध में संलिप्त होने की आशंका को गंभीरता से लिया गया।
2. अभियोजन (Prosecution) के समर्थन में साक्ष्य:
पुलिस जांच में स्पष्ट रूप से बच्चों के अपहरण और बिक्री की पुष्टि हुई।
आरोपियों के कबूलनामे, वीडियो फुटेज, मोबाइल चैट, कॉल रिकॉर्ड और बच्चों की बरामदगी जैसे साक्ष्य मज़बूत हैं।
3. High Court द्वारा जमानत देने में लापरवाही:
हाई कोर्ट ने जमानत देते समय आपराधिक षड्यंत्र, बच्चों की repeated trafficking, और फरारी जैसे महत्वपूर्ण तथ्यों को नजरअंदाज किया।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह निर्णय “कानून के सिद्धांतों के प्रतिकूल” था।
4. बच्चों की भलाई सर्वोपरि:
यह निर्णय बच्चों की सुरक्षा और मानवाधिकारों की रक्षा के उद्देश्य से लिया गया है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि “बेल का अधिकार, अपराध की गंभीरता और समाज पर पड़ने वाले प्रभाव के सापेक्ष देखा जाना चाहिए।”
5. अदालत का निष्कर्ष:
इस तरह के मामलों में यदि न्यायालय सख्ती नहीं बरते, तो तस्करों को प्रश्रय मिलेगा और बच्चों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।
इस विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि सर्वोच्च न्यायालय ने गुड़िया संस्थान व अधिवक्ता अपर्णा भट्ट और गोपाल कृष्ण एडवोकेट द्वारा प्रस्तुत तर्कों से सहमत हो न केवल अपराध की गंभीरता को समझा, बल्कि बच्चों के अधिकारों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।