कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के पीए समेत दो को मिली जमानत


वाराणसी। दुकान का ताला तोड़कर लूटपाट करने और रंगदारी मांगने के मामले में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के पीए समेत दो आरोपितों को कोर्ट से राहत मिल गई। विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो एक्ट द्वितीय) नितिन पाण्डेय की अदालत ने पाण्डेयपुर निवासी आरोपित अमित पाठक व पिशाचमोचन, सिगरा निवासी आनंद पाण्डेय को 75-75 हजार रुपए की दो जमानतें एवं बंधपत्र देने पर रिहा करने का आदेश दिया। अदालत में बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता श्रीनाथ त्रिपाठी, अनुज यादव, नरेश यादव व संदीप यादव ने पक्ष रखा।

अभियोजन पक्ष के अनुसार सरायगोवर्धन, चेतगंज निवासी शकीला खातून ने चेतगंज थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। आरोप था कि उसने हथुआ मार्केट, चेतगंज में बुटीक संचालन के लिए एक दुकान पूर्व पार्षद संजय सिंह डॉक्टर से किराए पर ली थी। इस बीच पूर्व पार्षद संजय सिंह डॉक्टर के निधन के बाद उनके मित्र पाण्डेयपुर निवासी आरोपित अमित पाठक व पिशाचमोचन, सिगरा निवासी आनंद पाण्डेय जो काफी दबंग और आपराधिक किस्म के व्यक्ति है, उन्होंने जबरन उसे डरा-धमकाकर रंगदारी के रूप में पैसा लिया जाने लगा और मना करने पर दुकान खाली करने की धमकी देने लगे। कुछ दिन बाद उन लोगों द्वारा और पैसे की मांग किया जाने लगा। जब उसने मना किया तो वे लोग तरह तरह से प्रताड़ित करने लगे। इस बीच उन लोगों ने तीन मई 2024 को उसकी दुकान का ताला तोड़कर दुकान में रखे लाखों रुपए का सामान लूट लिया गया। इस पर जब वादिनी और उसकी पुत्री ने विरोध किया तो वे लोग उसकी पुत्री से छेड़खानी करते हुए जान से मारने की धमकी देने लगे। 

अदालत में बचाव पक्ष की ओर से दलील दी गई कि इसी वादिनी मुकदमा ने इसी घटना के संबंध में पूर्व में तीन लोगों के खिलाफ अभियोग दर्ज कराया था। जिसमें वर्तमान मुल्जिमान नामित नहीं थे और चेतगंज पुलिस द्वारा घटना की सत्यता न पते हुए मुकदमे में एफआर लगा दिया गया तथा चेतगंज पुलिस द्वारा वादिनी द्वारा झूठा मुकदमा दर्ज कराने के बाबत सीआरपीसी 182 के तहत कार्यवाही करने के लिए न्यायालय को रिपोर्ट प्रेषित किया। इसी बीच वादिनी द्वारा एफआर के तथ्य को छिपाते हुए उसी घटना को पुनः दिखाते हुए 156(3) के तरह न्यायालय में मुल्जिमान की संख्या 8 करते हुए दाखिल किया। जिसमें भी वर्तमान मुल्जिमान नामित नहीं थे। जिसे न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया। पुनः वादिनी मुकदमा द्वारा उसी घटना को दिखाते हुए यह तीसरा अभियोग दर्ज कराया था। न्यायालय द्वारा एक ही घटना की दो एफआईआर और एक सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत प्रार्थना पत्र कोर्ट में दाखिल होने और सभी आरोपित हर मामले में अलग-अलग होने को देखते हुए मामले को संदिग्ध मानते हुए मुल्जिमान की जमानत मंजूर कर ली।

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