वाराणसी में यज्ञ और भंडारे के साथ संपन्न हुआ चातुर्मास व्रत, शंकराचार्य ने बताया इसका सनातन धर्म में विशेष महत्व

वाराणसी में चातुर्मास व्रत के समापन के अवसर पर धार्मिक माहौल रहा। शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती ने बताया कि चातुर्मास व्रत का सनातन धर्म और संस्कृति में विशेष महत्व है। चार महीने तक चलने वाले इस व्रत में सन्यासियों को एक ही स्थान पर रहकर जप-तप करना होता है, जिससे समाज के चारों दिशाओं में नैतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विकास होता है।उन्होंने बताया कि पूर्व में चातुर्मास व्रत आषाढ़ एकादशी से कार्तिक एकादशी तक चलता था, लेकिन अब इसे आषाढ़ पूर्णिमा से भाद्रपद पूर्णिमा तक माना जाता है। इस दौरान सन्यासियों को नदियों के पार जाने, क्षौर कर्म और नाखून काटने जैसी क्रियाओं से परहेज करना होता है। 

यह व्रत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि साधु-संतों की यात्रा ठहर जाती है और धर्मविरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगता है।समापन अवसर पर यज्ञ, भंडारा और संत संगोष्ठी का आयोजन हुआ। संगोष्ठी का संचालन स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती ने किया। इस मौके पर महंत बाबा अवधबिहारी दास, महंत स्वामी प्रकाश आश्रम, स्वामी महादेव आश्रम, स्वामी बालेश्वरानन्द तीर्थ, स्वामी मुनीश आश्रम, स्वामी रणछोड़ आश्रम, विजयराम दास, महंत मोहन दास सहित सैकड़ों साधु-संत और श्रद्धालु उपस्थित रहे। धर्माचार्य सीमोल्लंघन के बाद मठ-मंदिरों से बाहर निकलकर धर्म प्रचार और अन्य धार्मिक आयोजनों में भाग लेंगे।

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