सावन के चौथे सोमवार को काशी के हर छोटे-बड़े शिवालयों में हर-हर महादेव की गूंज रही। लाखों की संख्या में भक्त एवं कांवरिया दर्शन पूजन हेतु काशी पहुंचे। बाबा श्री काशी विश्वनाथ के दर्शन-पूजन के लिए भक्तों का रेला उमड़ पड़ा। भोर से ही भक्तों की लाइन लग गई। मंगला आरती के बाद दर्शन-पूजन का क्रम प्रारंभ हुआ। जैसे ही भक्तों के दर्शन हेतु बाबा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का पट खुला वैसे ही पूरा वातावरण बाबा के गगनभेदी जयकारों से गुंजायमान हो उठा हर ओर से हर हर महादेव बोल बम के उद्घोष गूंजते रहे।
काशी सहित देश-दुनिया से आए भक्तों ने कतार बद्ध होकर बाबा का दर्शन व जलाभिषेक किया। इस दौरान पूरा मंदिर परिक्षेत्र केसरिया रंग में रंगा नजर आया सभी शिव भक्तों से बाबा की एक झलक पाने को आतुर दिखे। हाथों में गंगाजल माला फूल इत्यादि लिए अपनी बारी के इंतजार में सभी भक्त खड़े रहे।
सभी ने क्रमबद्ध बाबा झांकी दर्शन किया। बाबा का दर्शन करने के पश्चात भक्तों ने बताया कि सभी व्यवस्थाएं काफी अच्छी है सुगमता पूर्वक बाबा का दर्शन हो रहा है। वही इस मौके पर सुरक्षा की दृष्टि से व्यापक प्रबंध रहे चप्पे-चप्पे पर फोर्स तैनात रही जो निर्बाध रूप से दर्शन पूजन का कार्य कराती रही।
वही सावन के चौथे सोमवार को शहर के सभी छोटे बड़े शिवालयों में भक्तों की भीड़ रही श्रद्धालुओं ने भोर से ही मंदिर में पहुंचकर दर्शन पूजन किया। इसी कड़ी मे श्रावण माह के चौथे सोमवार को ईश्वरगंगी स्थित जागेश्वर महादेव मंदिर में काफी संख्या मे भक्तो ने दर्शन पूजन किया ।
श्रद्धालु माला फूल मिष्ठान इत्यादि लेकर पहुंचे और बाबा को अर्पित कर विधिवत पूजन किया साथ ही बाबा का जलाभिषेक किया। मंदीर के महन्त मधुरकृष्ण जी महाराज ने सभी भक्तो मे प्रसाद वितरित किया और श्रावण माह की महिमा को विस्तार से बताया।
इसी क्रम में शूलटंकेश्व महादेव मंदिर में भी भक्तों का ताता लगा रहा काफी संख्या में श्रद्धालुओं ने पहुंचकर बाबा का दर्शन पूजन करते हुए उनसे जीवन मंगल की कामना की। शूलटंकेश्वर महादेव भक्तों के समस्त शूल को हर लेते हैं। मान्यता है कि जिस तरह से मां गंगा के शूल नष्ट हुए उसी तरह शूलटंकेश्वर का दर्शन करने वालों के सभी दुख दूर हो जाते हैं। काशी के दक्षिण में बसे मंदिर के घाटों से टकराकर गंगा काशी में उत्तरवाहिनी होकर प्रवेश करती हैं। वाराणसी शहर से 15 किलोमीटर दूर माधवपुर गांव में स्थित शूलटंकेश्वर महादेव विराजते हैं। इस मंदिर में हनुमान जी, मां पार्वती, भगवान गणेश, कार्तिकेय के साथ नंदी विराजमान हैं।
मंदिर के पुजारी ने बताया कि माधव ऋषि ने गंगा अवतरण से पहले शिव की आराधना के लिए ही यहां पर शिवलिंग की स्थापना की थी। गंगा तट पर तपस्या करने वाले ऋषि-मुनियों ने इस शिवलिंग का नाम शूलटंकेश्वर रखा। इसके पीछे धारणा यह थी कि जिस प्रकार यहां गंगा का कष्ट दूर हुआ उसी प्रकार अन्य भक्तों का कष्ट दूर हो। यही वजह है कि पूरे वर्ष तो यहां भक्त दर्शन को आते ही हैं लेकिन अपने कष्टों से मुक्ति के लिए सावन में भक्तों की भीड़ ज्यादा होती है। सीकड़ बाबा और दशरथ यादव ने बताया कि पुराणों के प्रसंग के अनुसार गंगा अवतरण के बाद जब वह काशी में अपने रौद्र रूप में प्रवेश करने लगीं तो भगवान शिव ने काशी के दक्षिण में ही त्रिशूल फेंककर गंगा को रोक दिया। भगवान शिव के त्रिशूल से मां गंगा को पीड़ा होने लगी। उन्होंने भगवान से क्षमा याचना की। भगवान शिव ने गंगा से यह वचन लिया कि वह काशी को स्पर्श करते हुए प्रवाहित होंगी। साथ ही काशी में गंगा स्नान करने वाले किसी भी भक्त को कोई जलीय जीव हानि नहीं पहुंचाएगा। गंगा ने जब दोनों वचन स्वीकार कर लिए तब भगवान शिव ने अपना त्रिशूल वापस लिया।