बीएचयू इतिहास विभाग में राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं पुरातन छात्र समागम हुआ आयोजित

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग द्वारा "काशी पुनर्विचार : सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक विमर्श" दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं पुरातन छात्र समागम का उद्घाटन सामाजिक विज्ञान संकाय के संबोधि सभागार में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर स्वागत उद्बोधन करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. घनश्याम ने कहा कि यह आयोजन इतिहास विभाग के पुरातन विद्यार्थियों को अपनी पुरातन संस्था से जोड़ने का उपक्रम है। उन्होंने कहा कि 37 साल बाद सामाजिक विज्ञान संकाय के प्रमुख के पद पर सेवा करने का अवसर विभाग के किसी प्रोफेसर को मिला है, शायद यह इस आयोजन के होने का बिल्कुल अनुकूल समय है। उन्होंने कहा कि इतिहास विभाग काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सबसे वैविध्यपूर्ण संकाय सदस्यों वाला विभाग है, जहाँ सभी का प्रतिनिधित्व है। उन्होंने कहा कि पुरातन छात्र समागम के इस आयोजन का बीज दो वर्ष पूर्व रोपित हुआ था जब महाराजा बीर बिक्रम सिंह विश्वविद्यालय, त्रिपुरा के कुलपति और विभाग के पुरातन छात्र विभाग के दौरे पर आए थे। यही कारण है कि हमने आज उन्हें बतौर मुख्य अतिथि इस कार्यक्रम के उद्घाटन हेतु बुलाया। 

कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में ही बतौर मुख्य वक्ता संबोधित करते हुए प्रोफेसर मारुति नंदन तिवारी ने कहा कि काशी नगरी सदैव से समन्वय, समावेशी और समग्र भाव से सभी व्यक्ति और विचारों का स्वागत करने वाली नगरी रही है। काशी के घाटों पर देश सुदूर राज्यों का प्रतिनिधित्व व उनकी संस्कृति देखने को मिलती है। उन्होंने कहा कि काशी में शैव, शाक्त, वैष्णव, जैन, बौद्ध जैसे सगुण से लेकर निर्गुण भक्ति परंपरा की लंबी धारा रही है। काशी एक ऐसी नगरी है जहाँ लोग विविध धार्मिक, आध्यात्मिक और वैचारिक मतों को मानते रहें और साथ-साथ जीतें रहे हैं। उन्होंने कहा कि आधुनिकता की मार बनारस की संस्कृति और जीवनशैली पर भी पड़ी है। बनारस की सामूहिकता की संस्कृति क्षीर्ण हुई है। लोगों और समाज में 'हम' से ज्यादा 'मैं' की भावना प्रबल हुई है। हमें जरूरत है कि हम आने वाले समय में सायास प्रयास के जरिये वापस से 'मैं' के बरक्स 'हम' की भावना को प्रबल करे। उन्होंने कहा कि काशी को लेकर विशिष्ट शोध अध्ययन बहुत हुए हैं लेकिन आज के दौर में काशी के समग्र अध्ययन की जरूरत है। इतिहास विभाग को काशी के इतिहास के समग्र रूप से अध्ययन की दिशा में पहल करनी चाहिए। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महाराजा बीर बिक्रम सिंह विश्वविद्यालय, त्रिपुरा के कुलपति प्रोफेसर सत्यदेव पोद्दार ने कहा कि मैं भले ही कुलपति हूँ परंतु यहाँ इतिहास विभाग में मैं किसी कुलपति के तौर पर नहीं बल्कि एक छात्र के तौर पर आया हूँ। मुझे लगता है कि इस विभाग के छात्र होने के तमगे से ज्यादा विशिष्ट तमगा कोई नहीं है। उन्होंने कहा कि आज मुझे अपनी पीएचडी गाइड प्रोफेसर सुमित्रा गुप्ता का स्मरण हो रहा है जिन्हें कोरोना के दौर में हमने खो दिया। यह मेरे निर्माण की भूमि है इस विभाग में अध्ययन कर पाने के ही कारण मुझे जीवन मे सफलता मिली। इस अवसर पर कार्यक्रम में पूर्व संकाय प्रमुख प्रोफेसर राम प्रवेश पाठक, प्रोफेसर अरविंद कुमार जोशी, प्रोफेसर राकेश पांडेय को सम्मानित किया गया।

Post a Comment

Previous Post Next Post