गुरुवार की देर रात भव्यता और भारी भीड़ के बीच भदैनी रामलीला में भरत मिलाप और नगर भ्रमण का प्रसंग चला। सैकड़ों साल पुरानी काठ की पालकी पर भगवान राम अपने चारों भाईयों लक्ष्मण, भरत, शत्रुध्न, माता सीता और हनुमान जी के साथ नगर भ्रमण पर निकले। आधी रात पूरे अस्सी क्षेत्र में मेला सा लग गया। करीब 2 हजार किलोग्राम भारी पालकी को 20 लोगों ने उठाया और करीब 20 मिनट तक नगर भ्रमण कराया। जगह-जगह पर भगवान राम, लक्ष्मण और सीता का अभिनंदन हुआ। पूरा अस्सी क्षेत्र अयोध्या बन गया।
भगवान राम रावण का वध करके लक्ष्मण और सीता के साथ गुरुवार को देर रात लंका से लौटे। यहां पर दौड़ते हुए राम और लक्ष्मण ने भरत-शत्रुघ्न को गले लगाया। इसके बाद शुरू हुआ नगर भ्रमण। करीब 1000 से ज्यादा लोग भगवान की पालकी के साथ-साथ चले। भगवान राम इस दौरान अपने भक्त और 900 साल तक जीने वाले बाबा देवरहा के आश्रम और तीर्थ पुरोहित पंडित बलराम मिश्र के आवास पर कुछ देर के लिए रूके। परंपरा के अनुसार, भगवान राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुध्न, माता सीता, हनुमान और उनके गणों समेत सभी भक्तों का लड्डू से मुंह मीठा किया गया। करीब 5 मिनट तक यहां का पड़ाव था।
पंडित बलराम मिश्र और श्रवण मिश्र समेत तीर्थ पुरोहित परिवार के कई सदस्यों उन्हें पानी पिलाकर पालकी को विदा किया। परंपरा के अनुसार, पालकी को यहां पर पिछले 400 सालों से ही रोका जाता रहा है। यहां पर मौजूद भक्तों ने भगवान राम को निहारा और श्रद्धा सुमन भेंट किया। इसके बाद पालकी वापस भदैनी की ओर प्रस्थान कर गई।भदैनी रामलीला के संरक्षक संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र ने कहा, "असि नदी को समुंदर और उसके पार रावण की लंका बनाई। पूरे 5 किलोमीटर के एरिया को राम कहानी का ओपन थिएटर बनाया। यह दुनिया का पहला ओपन थिएटर था, जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने 16वीं सदी में शुरू किया था। गोस्वामी जी ने जिस तुलसी घाट पर रहकर रामचरित मानस की रचना की, वहीं से उन्होंने ने 400 साल पहले भदैनी की रामलीला शुरू कराई।