गंगा में रेत पर कला के क्षेत्र से जुड़े विद्यार्थियों ने अनूठी कला का प्रदर्शन किया। रेत पर अद्भुत आकृति उकेर कर अपने कलाकौशल का परिचय दिया। एक दिवसीय कार्यशाला में दिन बढ़ने के साथ ही रेत की आकृतियां आकार लेने लगीं और धीरे-धीरे ऐसा प्रतीत होने लगा मानों खुले आसमान के नीचे रंगमंच सा बन गया हो। कलाकारों की आकृतियों ने दर्शकों को प्रभावित किया और खूब सराही गई।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कला इतिहास विभाग के प्रोफेसर प्रदोष कुमार मिश्रा ने बताया कि बनारस में विगत 20 वर्षों से हर वर्ष 19 जनवरी को यह कार्यक्रम आयोजित होता रहा है। इसमें अनेक कलाकार- पेशेवर और नवागत, प्रतिभागिता करते रहे हैं। शुक्रवार को इस आयोजन की 20वीं कड़ी प्रस्तुत की गई। इसमें बनारस के स्कूली छात्रों से लेकर कला के विद्यार्थी अपनी कला कौशल तथा समझ से लोगों को परिचित करा रहे हैं। विशेष रूप से बनारस की अद्भुत कल्पना इस खोज का साक्षी रहा है। एक दिवसीय कार्यशाला में दिन बढ़ते ही कलाकारों द्वारा रेत में आकृतियां आकार लेने लगी और धीरे धीरे ऐसे प्रतीत हुआ जैसे मुक्त आसमान के नीचे एक रंगमंच सा बन गया, जो उपस्थित दर्शक को प्रभावित करने लगा था। भावनाओं से प्रेरित यह आकृतियां अपनी अस्मिता, समस्या, विचार आदि को साथ लिए साझ होते होते कलाकारों और दर्शकों के प्रस्थान के बाद, मां गंगा के आंचल में समा जाने को आतुर रहते हैं।
राम छाटपार शिल्पन्यास की ओर से आयोजित 'रेत की आकृति की खोज' बनारस की कला क्षेत्र में एक नया आयाम प्रदान किया है। कुछ विद्यार्थियों से आरम्भ हुआ यह आयोजन अब विशाल स्वरूप लेने लगा है और कई बार तो विदेशी कलाकार इसमें प्रतिभागिता करते हुए नज़र आते हैं। बनारस के प्रमुख कलाकार तथा राम छाटपार शिल्पन्यास के संस्थापक मदन लाल अपने गुरु राम छाटपार के जन्मदिन के उपलक्ष इस कार्यशाला का आयोजन करते हैं। विगत एक वर्ष के विश्विक महामारी के चलते मानव जाति को जो पीड़ा उठानी पड़ी है, उस संदर्भ में यह कार्यशाला निश्चित ही सृजनात्मक राहत देनेवाला है। इस कार्यशाला में बनारस के अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने उपस्थित होकर कलाकारों का उत्साहवर्धन किया।