मूर्ख दिवस की शाम राजेंद्र प्रसाद घाट पर सजी मूर्खों की महफिल, हास्य व्यंग्य की रचनाओं और अनूठी रस्मों पर लगे जमकर ठहाके

काशी के गंगा घाट हर वर्ष की तरह इस बार भी मूर्खों का मेला लगा। दुश्वारियों और झंझावातों को तिलांजलि देकर गंगा तट पर पहुंचे काशीवासियों के ठहाकों से पूरा तट गूंजायमान हो गया। काशी का राजेंद्र प्रसाद घाट ठहाकों से गूंज उठा। सोमवार की शाम मूर्ख दिवस के अवसर पर मूर्खों की महफिल सजी। कौन कितना बड़ा मूर्ख, इसके लिए द्वन्द हुए। 

मूर्ख दिवस पर महफ़िल जमी, तो कई राजफाश हुए। काशिका अंदाज और पूरी रस व्यंजना के साथ रिझाती तो बनारसी बोली का अनूठापन, इसकी सजावट और मुहावरेदानी खूब लुभाती रही। मूर्खों ने एक से बढ़कर एक व्यंग्य सुनाए। गुदगुदाते मंत्रों व आड़े टेढ़े यंत्रों से दूल्हा-दुल्हन की आगवानी राजेंद्र प्रसाद घाट पर हुई। 

गोष्ठी के अलबेले आयोजन महामूर्ख मेला में कवियों की रचनाओं से होते ठहाकों का रेला ठसी घाट की सीढ़ियों पर रात तक उफान लाता रहा। राजनीति, सामाजिक रीति, भ्रष्टाचार-अनाचार तो पत्नी-प्रेयसी की प्रीति भी व्यंग्य बाण के निशाने पर रहे। कनस्टर-नगाड़ा साज पर गर्दभ राग गूंजा और बेमेल जोड़े की बरात सजी। गड़गड़ाते नगाड़ों और गर्धभ स्वरों के बीच दो जोड़े वर और कन्या मंडप में पहुंचे। घाट पर मोमबत्ती के चारों ओर फेरे लिये गए। 

मजे की बात यह रही पुरुष दुल्हन के रुप में थी तो महिला दुल्हे के रुप में। उनके अगल- बगल था मूर्खो का जमावड़ा। गाजेबाजे के साथ दुल्हन को विवाह मंडप में नाउन बने पुरुष उन्हें मंडप में लेकर आये। राजेंद्र प्रसाद घाट पर बेमेल शादी में मूर्खों के सम्मान के लिए सूप, कजरौटा, चलनी जैसे सामान भी लाए गए। इसे देखने के लिए घाट की सीढ़ियों पर मानों पूरी काशी समा गई। शादी की रस्म निभाने के बाद हास्य कवियों ने अपनी व्यंग्य रचनाओं से लोगों को जमकर हंसाया।

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