चैत्र नवरात्रि के छठवें दिन मां ललिता गौरी के चरणों मे भक्तों ने नवाया शीश

चैत्र नवरात्र में नौ गौरी दर्शन-पूजन के क्रम में छठें दिन माता ललिता गौरी के दर्शन-पूजन की मान्यता है। इनका मंदिर ललिता घाट क्षेत्र में स्थित है। ललित कलाओं में रुचि उत्पन्न करने और उसमें सिद्धहस्त होने का वरदान गौरी के ललिता स्वरूप से ही भक्तों को प्राप्त होता है। देवी पुराण के अनुसार ललित कलाएं भी देवी की साधना का एक माध्यम हैं। 

ललित कलाओं की साधना करना भी जप, तप और अनुष्ठान के ही समान बताया गया है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक मनुष्य के जीवन में इन ललित कलाओं की अनिवार्यता है। इसके अभाव में मनुष्य भी पशु के समान माना गया है। ऐसे धार्मिक आख्यानों में आस्था व्यक्त करते हुए काशीवासियों ने वासंतिक नवरात्र की षष्ठी तिथि पर ललिता घाट स्थित ललिता गौरी का दर्शन पूजन किया। 

इस अवसर पर देवी का भव्य शृंगार किया गया। भक्तों ने देवी को उनका प्रिय अड़हुल का पुष्प, नारियल और प्रसाद अर्पित कर जीवन मंगल की कामना की। मंदिर के महंत ने बताया कि यह 52 शक्तिपीठों में से एक है जहां पर मां का हृदय गिरा था ऐसे में मन से हृदय से मांगी गई मनोकामना पूर्ण होती है हृदय रोगियों को यहां विशेष दर्शन पूजन से लाभ होता है। वही कुंवारी कन्याएं भी माता का दर्शन पूजन करती हैं।


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