इसके पूर्व विषय स्थापना करते हुए महाविद्यालय के मंत्री/ प्रबंधक अजीत कुमार सिंह यादव ने कहा कि समाज मे मानवीय मूल्यों का निरतंर ह्रास हो रहा है, जिसमे शिक्षा का बाजारीकरण चिंता का विषय है। राष्ट्र को अब ऐसी शिक्षा व्यवस्था की आवश्यकता है जिसमे एकलव्य तो तैयार हो लेकिन उसका अंगूठा ना मांगा जाए।ध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के कार्यकारी प्राचार्य प्रो. सत्यगोपाल जी ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ डिग्री लेने का माध्यम ना बने बल्कि ज्ञानार्जन का माध्यम बने। अतिथियों का स्वागत महाविद्यालय के उपाचार्य डॉ. राहुल, संचालन डॉ. नेहा चौधरी एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रो. संगीता जैन ने दिया। इस अवसर पर मुख्य रूप से पीजी कॉलेज के उपाचार्य प्रो. समीर कुमार पाठक, प्रो. मिश्रीलाल, डॉ. जियाउद्दीन, डॉ. हसन बानो, डीएवी इंटर कॉलेज के कार्यवाहक प्रधानाचार्य अरुण कुमार, डॉ. विवेक सिंह, परीक्षित सिंह, अनिल कुमार सहित समस्त विभागों के प्राध्यापक एवं बड़ी संख्या में विद्यार्थी शामिल रहे।
शिक्षा जब मानववादी मूल्यों पर आधारित होगी तो वह मनुष्य का निर्माण करेगी, वही अगर शिक्षा जातिवादी, भाषावादी और सम्प्रदायवादी होगी तो वह समाज मे विघटन पैदा करेगी। भारतीय संदर्भ में राष्ट्र निर्माण की चुनौती में शिक्षा की अहम भूमिका है। उक्त विचार प्रख्यात समाजशास्त्री एवं सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल साइंस, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर आनन्द कुमार ने बुधवार को डीएवी पीजी कॉलेज में आइक्यूएसी के तत्वावधान में आयोजित 'राष्ट्र निर्माण में शिक्षा की भूमिका' विषयक विशिष्ट व्याख्यान में व्यक्त किया। प्रो. आनन्द कुमार ने कहा कि राष्ट्र निर्माण का अर्थ काफी व्यापक है, जिसमे कहीं जुड़ाव है तो कही बिखराव भी है। राष्ट्र की भावना में मै नही हम की भावना सबसे महत्वपूर्ण होती है। भाषा की विविधता जो दुनिया भर में समस्या के रूप में देखी गयी, वही भाषायी विविधता का बंधन भारतीयों ने वरदान के रूप में स्वीकार किया, भाषाओं ने हममें एकता का भाव पैदा किया। यहां अपनत्व की भाषा के आधार पर राष्ट्र का निर्माण होता है।प्रो. आनन्द कुमार ने कहा कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था दो सौ वर्षों तक अंग्रेजो के कब्जे में रही, जिसके कारण इसमें काफी दोष उत्पन्न हुए। इसमें पहली बार सन 1966 में सुधार का प्रयास किया गया और कोठारी आयोग का गठन हुआ। उन्होंने कहा कि शिक्षा में दोष के प्रति सजग होना हमारी जिम्मेदारी है। प्रो. कुमार ने यह भी कहा कि राष्ट्र की भावना का विकसित देशों में भी अभाव दिखता है। अमेरिका में यह नस्लभेद के रूप में तो यूरोप में प्रवासियों के कारण यह समस्या ज्यादा है। शिक्षा प्राप्त करने के बाद जिनको जल्दी सफलता चाहिए उनके लिए भारत छोड़ो अभियान आज भी चल रहा है। अंत मे उन्होंने कहा कि शिक्षित भारत ही राष्ट्र का निर्माण करने में सक्षम है, भारत की तरक्की के लिए शिक्षा से बढ़ कर और कोई चीज महत्वपूर्ण नही हो सकती।