बीएचयू की मुक्ताकाशी संस्था पुलिया प्रसंग पर महात्मा बुद्ध जयंती पर हुई परिचर्चा

भारतीय चिंतन परंपरा में बुद्ध पहले रूढ़िभंजक चिंतक हैं। प्रो. प्रकाश शुक्ल बीएचयू की मुक्ताकाशी संस्था पुलिया प्रसंग पर महात्मा बुद्ध की 2586वीं जयंती पर 'भारतीय ज्ञान परम्परा और बुद्ध' विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए हिंदी विभाग,बीएचयू के आचार्य व महत्वपूर्ण साहित्यकार प्रो.प्रकाश शुक्ल ने कहा बुद्ध संस्था और संस्थानों का निषेध करने वाले चिंतक हैं। वे संस्था या राजप्रासाद को छोड़कर मुक्ताकाशी को चुनते हैं। संवादी और सहभागी होना बुद्ध चिंतन का आधार है। स्वयं की मुक्ति के साथ-साथ समाज की मुक्ति की चिंता बुद्ध करते हैं। प्रो शुक्ल ने कहा कि भारतीय चिंतन परंपरा में बुद्ध पहले रूढिभंजक चिंतक रहे हैं। जाति जैसी कुप्रथा के विकल्प में उन्होंने अधिक मानवीय व्यवस्था की खोज करने पर जोर दिया। 

उन्होंने कहा कि बुद्ध की चिंतन परम्परा ज्ञान से आरम्भ होती है जिसका समापन विवेक पर होता है जिसकी गूँज वैराग्य की परंपरा में सुनाई देती है। बुद्ध का चिंतन एक प्रश्नाकुल ज्ञान की परम्परा है। ज्ञान, विवेक और वैराग्य की त्रयी बुद्ध के चिंतन की बुनियाद है। मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रयागराज से पधारे युवा कवि डॉ. अमरजीत राम ने कहा कि बुद्ध का अर्थ ही है आत्मज्ञान। भारतीय जनसमाज के उपेक्षित वर्ग को बुद्ध ने एक बड़ा सहारा बेहद की कठोर समय में उपलब्ध कराया। डॉ. अमरजीत ने कहा कि मानवता के सजग प्रहरी हैं बुद्ध। आधार वक्त्तव्य देते हुए युवा आलोचक डॉ. विंध्याचल यादव ने कहा कि बौद्ध चिंतन परम्परा खांटी भारतीय चिंतन परम्परा है। हिंसा से मुक्त सत्य की ओर जनसमाज को मोड़ने का काम बुद्ध ने किया। 

विविधता और दूसरे की स्वीकार्यता बुद्ध के बुनियादी सिद्धांत है जहाँ आत्मज्ञान या आत्मचेतना महत्वपूर्ण है। डॉ. विंध्याचल ने कहा कि बुद्ध ने भारतीय चिंतन परम्परा को तर्क से लैस किया। भोजपुरी अध्ययन केंद्र ,बीएचयू के शोध छात्र मनकामना शुक्ल ने कहा बुद्ध भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रेरक तत्व हैं। हिंदी विभाग,बीएचयू के शोधकर्ता अमित कुमार ने कहा कि बुद्ध ने ज्ञान, नैतिक मूल्य और एकाग्रता पर जोर दिया। शोधार्थीबराकेश गुप्ता ने कहा कि महात्मा बुद्ध का चिंतन 'अप्प दीपो भव' पर आधारित है जो मनुष्य को आत्मावलम्बी बनाता है।कार्यक्रम का संचालन युवा अध्येता अक्षत पाण्डेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी नीलेश देशमुख ने किया।

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