सावन पूर्णिमा पर वैदिक परंपरा को जीवंत रखते हुए ब्राह्मणों ने किया श्रावणी उपाकर्म

प्रतिवर्षानुसार प्राचीन वैदिक परम्परा को जीवंत रखते हुए ब्राह्मणों ने श्रावणी उपाकर्म किया। यह उपाकर्म प्रतिवर्ष श्रावण पूर्णिमा वाले दिन होता रहा है। सोमवार को प्रात: गंगा तट के अहिल्याबाई घाट पर विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी विप्र समाज,उत्तर प्रदेश एवं शास्त्रार्थ महाविद्यालय,दशाश्वमेध के संयुक्त तत्वावधान में शुक्लयजुर्वेदीय माध्यांदिनी शाखा के ब्राह्मणों द्वारा श्रावणी मनायी गयी। पं.विकास दीक्षित के आचार्यत्व में सर्वप्रथम गाय के गौमय,गौघृत,गौदुग्ध,गौदधि,तथा गौमूत्र मिश्रित पंचगव्य से स्नान तथा उसका पान किया गया तदुपरांत भस्मलेपन किया गया । 

श्रावणी में अपामार्ग के पत्तों एवं कुशा एवं दूर्वा का भी नियमानुसार प्रयोग किया गया । संयोजक शास्त्रार्थ महाविद्यालय के पूर्व राष्ट्रपति पुरस्कृत प्राचार्य डॉ.गणेश दत्त शास्त्री ने बताया कि श्रावणी उपाकर्म का आयोजन प्राचीन काल से ही नदियों,तालाबों के किनारे विधिपूर्वक ऋषियों-मुनियों द्वारा किया जाता रहा है । कालान्तर में धीर-धीरे यह पद्धति काफी विकसित हुयी और आज वर्ष में एक बार इस उपाकर्म को करने के लिए देश-देशांतर में बैठे जनेऊधारी व्यक्ति काशी आते हैं और इस उपाकर्म को ग्रहण कर अपने को धन्य करते हैं। गंगा स्नान तथा तर्पण एवं आत्म शुद्धि क्रिया के पश्चात् शास्त्रार्थ महाविद्यालय के सरस्वती भवन में सप्तऋषि पूजन किया गया,जिसमें उपस्थित सभी ब्राह्मणों ने सप्त ऋषियों का पूजन-अर्चन कर वर्ष पर्यंत धारण करने वाले यज्ञोपवित को अभिमंत्रित किया। उपाकर्म का संयोजनविप्र समाज के संयोजक व शास्त्रार्थ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. पवन कुमार शुक्ल ने किया । इस अवसर पर डॉ. गणेश दत्त शास्त्री,ज्योतिषाचार्य डॉ.आमोद दत्त शास्त्री,डॉ.अशोक पाण्डेय,आचार्य विशाल औढेंकर,विनय कुमार तिवारी दिनेश शंकर दूबे,अवनीश पाण्डेय  आदि विद्वान् सहित सैकड़ों द्विज ब्राह्मण शामिल रहे ।



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