आश्विन नाट्य महोत्सव की छठी संध्या रंग दर्शकों के लिए मिलेजुले प्रभाव वाली रही। संस्था मंथन के बैनर तले मंचित नाटक 'गांव ससुराल, नाम दामाद' के कुछ दृश्यों ने जहां दर्शकों को आनंदित किया वहीं कई ऐसे भी दृश्य थे जो दर्शकों की ऊब का कारण बने। नागरी नाटक मंडली के मुरारी लाल मेहता प्रेक्षागृह में करीब आधे घंटे विलंब से शुरू हुए नाटक का आगाज जितना रोमांचक था अंत उतना ही नीरस।
शुरुआती 15 मिनट के बाद ही दर्शक दीर्घा में छाया सन्नाटा इस बात की गवाही दे रहा था। ग्रामीण परिवेश में तीज के त्योहार के इर्द-गिर्द घूमते नाटक में कई ऐसे तथ्य भी शामिल कर लिए गए जिसने नाटक को मूल संदेश से भटका दिया। कजरी तीज के उत्सव के दौरान हुए घटनाक्रम में तारतम्यता का अभाव दर्शकों को खटकता रहा। हबीब तनवीर के नाटक 'गांव का नाव ससुरार, मोर नाव दमाद' का हिंदी आलेख अर्चना शर्मा ने किया। निर्देशक परितोष भट्टाचार्य के परिश्रम को कलाकारों का पूरा सहयोग नहीं मिला।