श्रीगंगानगर कॉलोनी टिकरी थाना चितईपुर में कथा व्यास पंडित प्रवीण पाण्डेय जी महाराज द्वारा श्रीमद्भागवत कथा की अमृत वर्षा की गई कथा के प्रथम दिन उन्होंने बताया कि तुंगभंगा नदी के किनारे एक गांव था वहां पर आत्म देव नाम का एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी धुंधली रहती थी आत्म देव तो सज्जन था लेकिन उसकी पत्नी दुष्ट प्रवृति की थी। आत्म देव बहुत उदास रहता था क्योंकि उसको कोई संतान नहीं हो रहा था। और बहुत बार उसने आत्महत्या करने की भी कोशिश किया लेकिन सफल नहीं हो पाया, लेकिन एक दिन हताश होकर जंगल की तरफ आत्महत्या करने निकल गए रास्ते में उन्हें में एक ऋषि जी मिले और फिर आत्म देव ऋषि को अपनी कहानी सुना कर रोने लगा और उपाय पूछने लगा ऋषि ने कहा मेरे पास अभी तो ऐसा कुछ नहीं की जिससे मैं तुम्हें कुछ दे पाऊं, लेकिन आत्म देव ने बताया की उसकी गाय को कोई बच्चा नहीं हो रहा है और जब आत्म देव ऋषि को बार बार बोलने लगा तो ऋषि ने उसे एक फल दिया और उसको अपनी पत्नी को खिलाने को कहा और कहा की एक साल तक तुम्हारी पत्नी को सात्विक जीवन जीना पड़ेगा। आत्म देव वह फल लेकर ख़ुशी ख़ुशी घर वापस आकर सारी बात धुंधली को बताता है और उसको वो फल खाने को देता है।
लेकिन धुंधली सोचती है अगर बच्चा हुआ तो उसको बहुत कष्ट का सामना करना पड़ेगा यही सोच कर वह उस फल को नहीं खायी और जाकर सारी बात अपने छोटी बहन को बताई तो उसकी बहन ने उसे एक रास्ता बताया और कहा की मैं गर्भवती हूँ और मुझे बालक होने वाला है तू ही लेना उसको और उस फल को गाय को खिला दे इससे उस ऋषि की शक्ति का भी पता चल जायेगा। धुंधली ने ऐसा ही किया। और अपने पति आत्म देव के सामने गर्भावस्था का नाटक करने लगी और कुछ दिन बाद जाकर अपने बहन से बच्चा लेकर आ गयी। आत्म देव बहुत खुश हुआ खुशियां मनाई और उस बच्चे का नाम ब्रह्मदेव रखना चाहा लेकिन धुंधली ने फिर झगड़ कर उसका नाम धुंधकारी रखा। और धुंधली ने जो फल गाय को खिलाये थे उसके भी गर्भ से मनुष्य का बालक हुआ जिसके कान लम्बे लम्बे थे इसीलिए उसका नाम आत्म देव ने गोकर्ण रखा।
दोनों बड़े हो गए जिसमें धुंधकारी दुष्ट व चाण्डाल प्रवृति का था तो गोकर्ण सरल स्वभाव का था। धुंधकारी सारे गलत काम करता एक दिन तो उसने अपने पिता आत्म देव की ही पिटाई कर दी। आत्म देव बहुत दुखी हुआ और अपने दुखी पिता को देख गोकर्ण उनके पास आया और उनको वैराग्य जीवन जीने के लिए कहा। और कहा की संसार में हम बस भागवत दृष्टि रखकर ही सुखी हो सकते है। गोकर्ण की बात मानकर आत्म देव गंगा के किनारे आकर भागवत के दशम स्कंध का पाठ करने लगे थे और उसी जीवन में उन्हें भगवान श्री कृष्ण की प्राप्ति हो गयी थी।वही इस कथा का श्रवण करने आस पास के गांवों और जिलों से बड़ी संख्या में लोग आए ।