रामछटपार शिल्पन्यास द्वारा कविता संग्रह रेत में आकृतियां पर हुई संगोष्ठी

रामछाटपार शिल्पन्यास ,वाराणसी के तत्वावधान में हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि व गद्यकार प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल के कविता संग्रह 'रेत में आकृतियां' के बहाने 'कविता व शिल्प' विषय पर एक सङ्गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता प्रतिष्ठित समालोचक प्रो. कमलेश वर्मा ने की।अपने अध्यक्षीय वक्त्तव्य में प्रो कमलेश वर्मा ने कहा कि मूर्तिकला और चित्रकला आपस में एक दूसरे से जुड़ी होती है। प्रो वर्मा ने कला की शक्ति और उसकी पारखीय दृष्टि रखने वाले को महान अध्येताओं का जिक्र अपने वक्तव्य में किया। मूर्ति कला और कविता के बीच कैसा संबंध रहा है इसे उन्होंने तमाम शेरों और गजलों के हवाले से बतलाया। कला ही ऐसा युक्ति है, जो चीजों को सुरक्षित रखती है। कलाकार हमेशा अपने कैनवास के रंगो की भाषा से चीजों को गढ़ता है। संग्रह की कुछ चुनिंदा कविताओं के माध्यम से कविता के शिल्प पर अपनी बात रखी।

मुख्य वक्ता के रूप में बोलते  हुए भोजपुरी अध्ययन केंद्र,बीएचयू के समन्वयक प्रो प्रभाकर सिंह ने कहा कि इस संग्रह में कविता और कला का संगमन है।यह संग्रह रेत पर बातचीत का एक व्यापक संग्रह है। अपने आत्म वक्त्तव्य में प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि रेत पर आधारित उनकी कविताएं आत्मविभोर अपनापे से उपजी हैं जहां सर्जक के भाव की उच्चता नहीं सहभोक्ता का विनय स्वर है।इस अवसर पर डॉ मनकामना शुक्ल ने 'रेत में आकृतियाँ ' कविता संग्रह के दार्शनिक शिल्प पर बात करते हुए श्रीप्रकाश शुक्ल पर केंद्रित स्वरचित एक कविता का पाठ किया।कार्यक्रम का संचालन डॉ रवि शंकर सोनकर ने किया।स्वागत न्यास के अध्यक्ष प्रो मदन लाल गुप्त ने किया।धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी पंकज यादव ने किया।कार्यक्रम में प्रो.देवेंद्र मिश्र, डॉ.शैलेन्द्र सिंह,शिवम, निलेश, अमित, राकेश,आलोक,पूजा, मोनी और ढेरों छात्र-छात्राएं उपस्थित रहें।




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