अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा: कोई राजनीतिक दल गाय के पक्ष में नहीं, जो गौरक्षा की बात करेगा उसे ही मतदान करने का लिया संकल्प

बहुसंख्यक हिन्दुओं के देश भारत में हिन्दुओं की पहली माँग गोरक्षा के विषय में कहने को तो हर राजनीतिक दल आजादी के पहले से ही गोरक्षा की बात कहता रहा है पर आजादी के ७८ वर्ष बीत जाने पर भी इस विषय में कोई केन्द्रीय कानून नहीं बन सका क्योंकि असल में कोई स्थापित दल ये चाहता ही नहीं था।  यह राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव ही है जो भारत के संविधान की धारा ४८ में गोहत्या को प्रतिबन्धित करने का प्रयास करने के लिए कहे जाने और भारत की बहुमत आबादी द्वारा निरन्तर गौरक्षा की माँग किए जाने के बाद भी आज ७८ साल बाद तक भी देश में गोरक्षा क़ानून नहीं बनाया जा सका है। 

उक्त उद्गार ज्योतिष्पिठाधीश्वर शङ्कराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द ने आज काशी के केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ में पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए।उन्होंने आगे कहा  कि लम्बे समय से गौप्रतिष्ठा आन्दोलन चलाने के बाद उन्होंने समग्र आस्तिक हिन्दू समाज की ओर से प्रयाग महाकुम्भ की समाप्ति पर ३३ दिनों के अन्दर भारत के हर स्थापित राजनैतिक दल से गोमाता के बारे में अपने विचार स्पष्ट करने के लिए कहा था। उन्होंने पूछा था कि आप बताएं कि आप गाय के पक्ष में हैं या विपक्ष में? पर किसी भी स्थापित राजनैतिक दल ने उत्तर नहीं दिया। जिसके लिए १७ मार्च को रामलीला मैदान में दिन भर का प्रतीक्षा कार्यक्रम भी रद्द कर दिया गया और राजनैतिक दलों के कार्यालय के दरवाजे पर जाकर पूछने पर भी किसी ने उत्तर नहीं दिया। भारतीय जनता पार्टी ने तो उन्हें अपने कार्यालय के सामने जाने से भी बैरीकेटिंग कर पुलिस बल द्वारा रोक दिया और उनके कार्यक्रम की मिली हुई अनुमति भी रद्द कर दी। अब जबकि भारत के सभी स्थापित  राजनीतिक दलों से आशा समाप्त हो चुकी है तब गौरक्षा के लिये मतदाताओं को सङ्कल्पबद्ध होना ही एकमात्र उपाय रह जाता है।

 शङ्कराचार्य जी ने सङ्कल्प लिया कि वे गौरक्षा के लिए आज से यह प्रण लेते हैं कि प्रत्येक मतदान के अवसर पर मतदान अवश्य करेंगे और उसी पार्टी या प्रत्याशी को मतदान करेंगे जो गौरक्षा सहित समस्त सनातनी मानबिन्दुओं की रक्षा के सङ्कल्प के साथ राजनीति करने के लिए सङ्कल्पबद्ध होगा। उन्होंने अपने अनुयायियों और अन्य सभी लोगों से अनुरोध भी किया कि वे भी ऐसा ही सङ्कल्प लें जिससे देश में सनातनी राजनीति आगे आए और गौरक्षा सहित सनातन धर्म के समस्त प्रतीकों और सिद्धान्तों रक्षा सम्भव हो सके।

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