धधकती चिताओं के बीच नगरवधुओं ने किया नृत्य, सैकड़ो वर्ष पुरानी परंपरा निभाते हुए इस जन्म से मुक्ति की हुई कामना

चैत्र नवरात्रि के अवसर पर बाबा महाश्मसान नाथ जी का त्रिदिवसीय श्रृंगार महोत्सव आयोजित किया गया। इस महोत्सव में नगर वधुएं ने बाबा को अपनी भावाजंली प्रस्तुत की और संगीत के माध्यम से उनकी पूजा की।महोत्सव के दौरान, नगर वधुएं ने अपने गायन और नृत्य के माध्यम से बाबा को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने बाबा से अपने जीवन को सुधारने की प्रार्थना की और अपने नरकिय जीवन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने की कामना की।

यह महोत्सव वाराणसी की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे हर साल चैत्र नवरात्रि के अवसर पर आयोजित किया जाता है।काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर शुक्रवार रात नगर वधुओं ने नृत्य किया। एक ओर चिताएं जल रही थीं तो दूसरी तरफ ये भव्य आयोजन हुआ।  

वधुओं ने बाबा को रिझाने के लिए भजन गाए। उन्होंने बाबा से वरदान मांगा कि अगले जन्म में हमें नगर वधु न बनना पड़े। इस कलंकित जीवन से मुक्ति उन्हें मुक्ति मिले।आयोजक गुलशन कपूर ने कहा- 16वीं शताब्दी में काशी आए राजा मान सिंह ने मणिकर्णिका तीर्थ पर श्मशान नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। उस समय मंगल उत्सव के लिए नगर के संगीतकारों को भी आमंत्रित किया।

हिचक के चलते कलाकारों ने मंगल उत्सव में भाग लेने से मना कर दिया। राजा मानसिंह दुखी हुए और मंदिर में बगैर उत्सव किए ही लौटने का मन बना लिया। काशी के बुजुर्ग लोग बताते हैं- यह खबर जब नगर वधुओं तक पहुंची तो उन्होंने अपने आराध्य नटराज स्वरूप मसाननाथ की महफिल सजाने का फैसला लिया।बिना किसी संकोच के साथ राजा को संदेश भिजवाया कि वे मंगल उत्सव मनाने को उत्सुक हैं। संदेश पाकर राजा मान सिंह प्रसन्न हुए। उन्होंने सम्मान से रथ भेजा। नगर वधुओं को उत्सव में रथ से बुलवाया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।


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