रचयिता साहित्य उत्सव का पांचवां संस्करण काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के महामना ऑडोटोरियम में प्रारंभ हुआ। दो दिवसीय इस कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि प्रो० विश्वंभर नाथ मिश्र, मुख्य वक्ता के रूप में प्रो० श्रीप्रकाश शुक्ल, विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो० बद्रीनारायण, विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ नीरजा माधव एवं उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहें हिन्दी विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष वशिष्ठ अनूप द्विवेदी ने दीप प्रज्ज्वलित कर इस साहित्योत्सव की शुरुआत किये। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र ने कहा कि साहित्य को सम्वाद धर्मी होना चाहिए।साहित्य समाज का आईना है।इससे आइडेंटिटी विकसित होगी।साहित्य के माध्यम से नई पीढ़ी की ऊर्जा को दिशा देनी होगी।मुख्य वक्ता के रूप में हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि एवं आचार्य प्रो० श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि नवा वाणी मुखे-मुखे। वर्तमान समाज में देखें तो उर्जा का सदिश् अर्थात सही दिशा में प्रयोग किया जाना ही हमारे समय की मांग है। निरंतरता अगर खंडित होती है तो आक्रोश एवं कुंठा में बदल जाती है। इस सत्र की उद्घोषक मुस्कान शर्मा थी और कार्यक्रम की रूपरेखा रचयिता संस्था के संस्थापक पीयूष पुष्पम ने किया। कार्यक्रम के प्रथम सत्र का विषय था : "समकालीन कविता की धरती और वितान ".इस विषय पर अपनी बात रखते हुए प्रो. रामेश्वर राय ने समकालीनता और समसामयिकता के कुहरे को छाटते हुए समकालीनता की रेखा को स्पष्ट करने की कोशिश करते हैं। उन्होंने बताया कि समकालीनता को केवल अपने समय तक सीमित नहीं कर सकते, मूल्यगत स्तर पर समकालीनता का वितान विस्तृत है। समकालीनता का आधार बिन्दु है विचारधारा से मुक्ति। प्रो. आशीष त्रिपाठी ने बताया उत्तर नक्सलवाड़ी, उत्तर आपातकालीन कविता समकालीन कविता है। इस अवधि मे दो प्रमुख मोड़ एक 1990 में और दूसरा 2013-14 में जब देश में नई राजनैतिक स्थितियाँ उत्पन्न होती है। निर्गुण से सगुण हो जाती है बात जब आप नाम ले लेते हैं। समकालीन कवियों पर आपातकाल और नक्सल का प्रभाव नहीं है, नक्सलवाड़ी कविता के ढलान से शुरू होती है समकालीनता।
युवा आलोचक डॉ. विंध्याचल यादव ने कहा कि मेरे लिए समकालीनता का प्रश्न इतिहास दृष्टि का भी प्रश्न है। समकालीन कविता पर अब कोई इतिहास लिखा जाए तब समकालीनता की मूल प्रवृत्ति को अलगाना संभव हो पाएगा।अंजुम जी का प्रश्न था समकालीन कविता में वैज्ञानिक अप्रोच क्या है। सच को कला, साहित्य में अलग तरह से पकड़ता है और विज्ञान अलग तरह से। इनके अप्रोच में अंतर है। साहित्य जो काम संवेदना से, भाव से करता है, विज्ञान तर्क के जरिए, प्रयोग के जरिए करता है। इस सत्र का संचालन डॉ. अंजुम शर्मा कर रहे थे और उद्घोषक अनुज कुमार थे। द्वितीय सत्र : 'बनारस की साहित्यिक व सांस्कृतिक विरासत 'पर आधारित था। इस सत्र में हिन्दुस्तानी शास्त्री गायक, ग्वालियर घराना, पद्मश्री राजेश्वर आचार्य जी कंकर कंकर शंकर कहा जाता है, नीम का पत्ता हिल जाए तो भवन हिला देगी। काशी अनंत ज्ञान का विषय है। काशी ने तुलसी को बहुत परेशान किया था। आचरण करना अचार्यत्व है और विषय में, ज्ञान में स्नान कर लेना स्नातक है और आज लोग स्नातक की डिग्री लिए घूम रहे और अर्थ पूछने पर कहते हैं ग्रेजुएशन हैं। संस्कृत विभाग बीएचयू के संकाय प्रमुख प्रो. राजाराम शुक्ल से प्रश्न गोपीनाथ जी को कैसे याद किया जा रहा है, अयोध्या में लता जी का चौक है लेकिन गोपीनाथ जी को किस तरह से देखा जा रहा है। राजाराम जी कहते हैं जिस वस्तु को देखा नहीं जा रहा है, उसके सामने रहते हुए भी तो इससे उस वस्तु का अस्तित्व विलीन नहीं हो जाता, नहीं उसका महत्व कम हो जाता है बल्कि यह पता चलता है कि सामने वाला अंधा जरूर है। हमने अपने आत्मा से संवाद करना बंद कर दिया है, सत्ता, प्रतिष्ठा के मोह में। प्रो विजयनाथ मिश्र ने कहा कि काशी ऐसा सूर्य है जहाँ से ऊर्जा बराबर निकलती रहती है और ऐसी स्थिति में हम कैसे कह सकते हैं कि साहित्य, संस्कृति की दुनिया में इसकी आभा मंद पद गई है। काशी के वर्तमान न्यूरॉलॉजिकल समस्या क्या है, काशी क्यों बिसर रही है। वियजनाथ जी कहते हैं कि काशी की विरासत खंडहर नहीं जीवंत और गतिशील है, इसके प्रति जो पूज्य भाव है उसका अभाव कभी हुआ ही नहीं। काशी नागरी प्रचारिणी सभा के प्रधानमंत्री श्री व्योमेश शुक्ल ने कहा कि कविता का जन्म शोक से हुआ है। अपवादों को छोड़कर हिन्दी की मुख्यधारा की कविता शोकमूलक है।बनारस व्याकरण का शहर है। संचालन भोजपुरी की कवि एवं लोक गायिका आकृति विज्ञा अर्पण जी कर रही थी और उद्घोषक कवि अपूर्वा श्रीवास्तव थी।तृतीय सत्र का विषय था-'भारतीय स्त्री की अदम्य यात्रा' जिसमें प्रो चन्द्रकला त्रिपाठी,प्रो वंदना झा,डॉ नीरजा माधव,डॉ पूनम ने वक्तव्य दिया।संचालन डॉ उत्तम कुमार ने किया।चौथे सत्र का विषय था-'हिंदी साहित्य में विविधता और पहचान के सवाल'.इस सस्त्र में प्रो श्योराज सिंह बेचैन,प्रो बद्रीनारायण,डॉ प्रियंका सोनकर,ने अपनी बार रखी।संचालन अनुज कुमार ने किया।अंत में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें दमदार बनारसी, ज्ञान प्रकाश आकुल,सुशांत शर्मा,अल्पना आनंद,संकल्प श्रोतीय,अंकित मौर्य,आकांक्षा बुंदेला ने कविताएँ पढ़ीं।संचालन प्रशांत बजरंगी ने किया।