वाराणसी, जिसे प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र होने का "गौरव" प्राप्त है, आज बाढ़ की त्रासदी में कराह रहा है। गंगा और वरुणा के उफान से प्रभावित नागरिक घर छोड़ने को मजबूर हैं, लेकिन जिन राहत शिविरों में शरण मिली है, वे खुद एक नए संकट का केंद्र बन चुके हैं। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि राहत शिविरों में न राहत है, न ही मानवता की न्यूनतम गरिमा के अनुरूप सुविधा। बगैर दवाओं के अस्थायी मेडिकल टेबल, और अनियमित भोजन – यही "प्रशासनिक तैयारी" की असल तस्वीर है।कभी-कभी लगता है कि सरकार को अपने स्मार्ट सिटी के पोस्टर बदलने चाहिए – “स्वच्छता में नंबर एक, व्यवस्था में आखिरी पंक्ति”।इन गंभीर हालातों पर कांग्रेस की ज़िला और महानगर कांग्रेस कमेटी ने ज़मीनी हकीकत को सामने लाने का बीड़ा उठाया।जिला कांग्रेस अध्यक्ष राजेश्वर पटेल और महानगर अध्यक्ष ने एक संयुक्त निरीक्षण दल गठित किया,
जिसने विभिन्न बाढ़ राहत शिविरों का प्रत्यक्ष दौरा किया।इस दल ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि कई शिविरों में एक ही शौचालय का प्रयोग सैकड़ों लोग कर रहे हैं,पीने के पानी की व्यवस्था कहीं बाल्टी पर निर्भर है तो कहीं नलों से बहता गंदा पानी ही एकमात्र सहारा है,बच्चों व महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति चिंताजनक है, मगर चिकित्सा सहायता लगभग अनुपस्थित है,कई परिवारों को दो वक्त की रोटी भी भीख जैसी प्रतीक्षा के बाद मिलती है।कांग्रेस नेताओं ने सवाल उठाया कि जब प्रदेश सरकार चुनावी उद्घाटन समारोहों और स्मारक शिलान्यासों पर करोड़ों खर्च कर सकती है, तो क्या बाढ़ पीड़ितों की रक्षा और सम्मानजनक जीवन के लिए उसके पास बजट, संवेदना और इच्छाशक्ति नहीं है?
उक्त अवसर पर गिरीश पाण्डेय,रमजान अली,विनोद सिंह,राजू राम समेत दर्जनों लोग उपस्थित रहे।