श्रमिकों-किसानों-अध्यापकों की एकजुट हुंकार: जनविरोधी नीतियों के खिलाफ सड़कों पर जनसंगठन

मजदूरों, किसानों, कर्मचारियों और आम जनता की आवाज़ फिर गूंज उठी है।केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और श्रमिक महासंघों के आह्वान पर, देशव्यापी आम हड़ताल के समर्थन में, आज जनसंगठनों ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ प्रतिवाद दर्ज किया।सरकार द्वारा संसद से पारित चार श्रम संहिताएं, मजदूरों के खून-पसीने से हासिल अधिकारों पर हमला हैं। ये कोड मजदूर विरोधी हैं और कारपोरेट मुनाफाखोरों के हित में।हम मांग करते हैं कि इन संहिताओं को पूरी तरह वापस लिया जाए और पुराने श्रम कानूनों को बहाल किया जाए।'आठ घंटे काम' का ऐतिहासिक नियम फिर से लागू किया जाए।तीन कृषि कानून, जिन्हें किसानों ने अपने आंदोलन के बल पर रद्द करवाया था अब उन्हें सरकार 'राष्ट्रीय कृषि विपणन नीति' के नाम पर फिर से लागू करने की कोशिश कर रही है।

हम मांग करते हैं:एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाए और किसान आंदोलन के सभी वादे पूरे किए जाएं।उत्तर प्रदेश सरकार बिजली का निजीकरण कर रही है पूर्वांचल और दक्षिणांचल निगमों को बेचा जा रहा है।इससे महंगी बिजली, आरक्षण की समाप्ति और कर्मचारियों की नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है।हमारी मांग है:बिजली का निजीकरण फौरन रोका जाए,गरीबों को 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली दी जाए और स्मार्ट मीटर योजना को रद्द किया जाए।प्रदेश के 27,000 सरकारी स्कूलों को बंद करने की योजना ग़रीब विरोधी और शिक्षा विरोधी है।बच्चों को दूर के स्कूल या निजी स्कूल भेजना अभिभावकों के लिए असंभव है।हम मांग करते हैं:स्कूलों का मर्जर फौरन रोका जाए,शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाई जाए और शिक्षकों, रसोइयों और अन्य कर्मचारियों की नौकरियाँ सुरक्षित रखी जाएं। 


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