दाल मंडी पुरानी अदालत से साठे का पारंपरिक जुलूस निकाला गया। यह जुलूस शब्बीर सफदर के इमामबाड़े से प्रारंभ होकर दाल मंडी, नई सड़क, फटाक, सलीम, काली महल, पितरकुंडा होते हुए फातमान पहुँचा। जुलूस का नेतृत्व अंजुमन हैदरी चौक द्वारा किया गया।जुलूस में लियाकत अली और शराफत हुसैन सहित अन्य नोहे ख्वान मातमी नौहे पढ़ते हुए चल रहे थे। अलम, ताबूत, दुलदुल और ऊँट पर हज़रत इमाम हुसैन की बेटी जनाबे सकीना का कुर्ता तथा बेटे अली असगर का झूला सहित अनेक शहीदों की यादगार निशानियाँ पेश की गईं।
नई सड़क पर छोटे-बड़े, युवा और बुज़ुर्ग सभी ने मिलकर ज़ंजीर का मातम किया। इस दौरान मौलाना इरशाद अब्बास ने कई स्थानों पर तक़रीर की, वहीं मौलाना नदीम अजगर ने काली महल में संबोधित किया। तकरीरों में कर्बला की शहादत और उसके बाद हज़रत इमाम हुसैन के परिवार के कर्बला से ले जाए जाने और रिहाई के बाद मदीने लौटने की मान्यता पर प्रकाश डाला गया।जुलूस के दौरान “या हुसैन” की सदा बुलंद रही।