उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नया नाम चर्चा में है—BJP के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष पिंकी बाबू। बेहद साधारण पृष्ठभूमि से निकलकर प्रदेश की सबसे बड़ी राजनीतिक जिम्मेदारी तक पहुँचने की उनकी कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं है।बताया जाता है कि पिंकी बाबू ने अपने शुरुआती दिनों में कार में बैठकर पढ़ाई की। सीमित संसाधन, लेकिन मजबूत इरादों के साथ उन्होंने शिक्षा और संगठन—दोनों को साथ साधा।
राजनीति में आने का फैसला भी उनका खुद का नहीं, बल्कि भाई के कहने पर लिया गया एक कदम था, जिसने आगे चलकर उनकी किस्मत बदल दी।गांव और पंचायत स्तर की राजनीति में उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है। पंचायत चुनावों के माहिर खिलाड़ी के रूप में उन्होंने जमीनी स्तर पर संगठन को खड़ा किया और कार्यकर्ताओं के बीच भरोसा बनाया। यही कारण है कि संगठनात्मक क्षमता और जमीनी अनुभव को देखते हुए पार्टी नेतृत्व ने उन्हें यह बड़ी जिम्मेदारी सौंपी।
पिंकी बाबू की पहचान एक ऐसे नेता की है जो कम बोलते हैं, ज़्यादा काम करते हैं। अब उनकी अग्निपरीक्षा उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और राजनीतिक रूप से अहम राज्य में संगठन को और मज़बूत करना होगी।राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पिंकी बाबू का पंचायत से प्रदेश अध्यक्ष तक का सफर BJP की उस रणनीति को दर्शाता है, जिसमें ग्राउंड से जुड़े नेताओं को आगे लाया जा रहा है।

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