प्रख्यात मनोचिकित्सक और लेखिका डॉ. ऋचा पाठक द्वारा रचित हिंदी उपन्यास ‘पछतावा’ का विमोचन संस्कार ब्राह्मण महिला संगठन की संस्थापिका एवं वरिष्ठ समाजसेवी ममता द्विवेदी के नेतृत्व में किया गया। विशेष बात यह रही कि इस समारोह का आयोजन नारी सशक्तिकरण की प्रतीक महारानी लक्ष्मीबाई की जन्मस्थली पर आयोजित किया गया, जिससे कार्यक्रम का महत्व और भी बढ़ गया। उपन्यास की कथावस्तु पर प्रकाश डालते हुए डॉ. ऋचा पाठक ने बताया कि ‘पछतावा’ एक अत्यंत संवेदनशील व्यक्ति की कहानी है, जो अपने माता-पिता के दुःख, उपेक्षा और पारिवारिक कलह को बचपन से देखता आया था।
बड़े बेटे और बहू द्वारा किए गए तिरस्कार ने उसके मन में विवाह नामक संस्था के प्रति अविश्वास भर दिया। माता-पिता भी अनजाने में उसके इस पूर्वाग्रह को और गहरा करते चले गए। परिणामस्वरूप नायक ने अपने ही हाथों अपना वैवाहिक जीवन समाप्त कर दिया और तलाक के फैसले से एक निर्दोष, मासूम लड़की को बिना गलती के परित्याग का दंश झेलना पड़ा। लेखिका के अनुसार कहानी सिर्फ नायक के पछतावे की नहीं, बल्कि उस परित्यक्त महिला के संघर्ष और महानता की भी है। जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने जीवनसाथी को मानवीय आधार पर साथ दिया, यह सोचकर कि कठिन समय में छोड़ा तो वह जीवन भर स्वयं को माफ नहीं कर पाएगी। नायिका का यह त्याग और क्षमा उपन्यास को एक सशक्त सामाजिक संदेश देता है—कि माफ कर देना महानता है और पछतावा मन के मैल को धो देता है। डॉ. पाठक ने बताया कि यह उपन्यास उन सभी संवेदनशील लोगों की कहानी है, जो अपनी संवेदनशीलता को कमजोरी समझकर पूर्वाग्रहों में फंस जाते हैं और फिर जीवन भर गलत फैसलों के लिए पछताते रहते हैं। ‘पछतावा’ समाज के लिए एक आदर्श स्थापित करता है और रिश्तों में संवाद, समझदारी और करुणा के महत्व को रेखांकित करता है। उपन्यास के विमोचन कार्यक्रम में साहित्यप्रेमियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और महिलाओं की बड़ी संख्या उपस्थित रही। सभी ने डॉ. ऋचा पाठक के इस नए साहित्यिक योगदान की सराहना की।

