भगवान बुध्द ने चेतना को ही कर्म कहा है। चेतना के द्वारा ही काया, वाणी या मन से कर्म को करता है। चेतना से प्रेरित कर्मो का कुशल तथा अकुशल भेद का पालि साहित्य में निरूपण किया गया हैै। ये विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय,वाराणसी के प्रथम श्रमण विद्या संकायाध्य्क्ष प्रो जगन्नाथ उपाध्याय की स्मृति में श्रमण विद्या संकाय के अन्तर्गत योगसाधना केन्द्र में अभिधम्म दर्शन में कर्म एवं पुनर्जन्म तथा अभिधम्म ग्रन्थों में हृदयवत्थु विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बीएचयू के पाली एवं बौद्ध अध्ययन विभाग के विशिष्ट विद्वान प्रो बिमलेंद्र कुमार ने बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किया।प्रो बिमलेन्द्र कुमार ने बताया कि कर्मसिद्धांत’ आत्मा की मान्यता पर निर्भर करता है और बौध्द धम्म में आत्मा है ही नहीं। भगवान बुध्द के ‘कर्मसिद्धांत’ का सम्बन्ध कर्म से था और वह भी वर्तमान जन्म के कर्म से। विशिष्ट अतिथि पूर्व संकायाध्यक्ष श्रमण विद्या संकाय के प्रो हरप्रसाद दिक्षित ने आचार्य जगन्नाथ उपाध्याय के जीवन पर प्रकाश डाला।
अध्यक्षीय उद्बोधन कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी का रहा । इस दौरान मंचस्थ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन एवं माँ सरस्वती के प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया मंचस्थ अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत और अभिनंदन किया गया।समस्त कार्यक्रम के संचालक डॉ रविशंकर पान्डेय ने किया।इस मौके पर प्रो रामपूजन पान्डेय,प्रो हरिशंकर पान्डेय,प्रो जितेन्द्र कुमार शाही,डॉ पद्माकर मिश्र,प्रो हरिप्रसाद अधिकारी आदि उपस्थित थे।
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